: फागण : २०११ : आत्मधर्म–१३७ : १३१ :
‘नय’ना स्वरूप संबंधी स्पष्टता
* नय ते जड नथी पण श्रुतज्ञानो अंश छे *
लेखांक पहेलो
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हमणां हमणां जैनपत्रोना केटलाक लेखोमां “नय”ना स्वरूपसंबंधी घणी विपरीत प्ररूपणा चाली रही
छे; तेथी “नय”ना स्वरूप संबंधमां अहीं केटलीक स्पष्टता करवामां आवी छे, अने ते संबंधी शास्त्राधारो
आपवामां आव्या छे. [पू. गुरुदेवनी प्रेरणाथी आ लेख तैयार थयो छे.]
आ लेखनी भूमिका
(१) “नय ते जड नथी पण श्रुतज्ञाननो अंश छे” ए आ लेखनो मुख्य विषय छे. भगवान श्री
कुंदकुंदादि आचार्यभगवंतोए समयसारादि तथा षट्खंडागमादि शास्त्रोमां स्पष्टपणे ए सिद्धांतनुं प्रतिपादन कर्युं
छे के “निश्चयनयना आश्रये ज मुक्ति थाय छे, ने व्यवहारनयना अवलंबनथी मोक्ष थतो नथी,” अने ए
रहस्यने आजे पू. गुरुदेव सुप्रसिद्ध करीने समजावी रह्या छे. केटलाक जीवोने आ वात ईष्ट नथी लागती तेथी,
‘निश्चयनयना आश्रये मुक्ति थाय’ ए वातनो विरोध करवा माटे तेओ एम कहे छे के ‘निश्चयनय ते ज्ञान
नथी पण जड छे. ’ ज्ञानना अंशने जड कहेनारुं तेमनुं आ कथन आगमोथी एकदम विपरीत छे. वास्तविकपणे
‘नय’ ते जड नथी पण श्रुतज्ञाननो अंश छे एवुं दर्शावनारा केटलाक मुख्य शास्त्र आधारो अहीं आपवामां
आव्या छे.
(२) कोई एम कहे के “नय शब्दात्मक ज छे, अने नयने ज्ञान कहेवुं ते उपचार छे” तो ते वात सत्य
नथी परंतु विपरीत छे; केमके ‘नय’ ते वास्तविकपणे ज्ञान ज छे अने शब्दने नय कहेवो ते उपचारथी छे;
नयने ज्ञानात्मक कहेवो ते उपचार नथी पण नयने शब्दात्मक कहेवो ते उपचार छे. आ सबंधमां पण
केटलाक मुख्य शास्त्राधारो अहीं आपवामां आव्या छे.
(३) शास्त्रमां घणीवार नय अने नयना विषयनुं अभेदपणे कथन करवामां आवे छे,– अने तेवा
प्रसंगमां नयना विषयभूत पदार्थने पण नय कहेवामां आवे छे. ते संबंधी पण केटलाक शास्त्राधारो आपवामां
आव्या छे.
(४) शास्त्रमां अनेक स्थळोए नयने तेना विषयभूत पदार्थनो “ग्राहक” कहेवामां आवे छे, त्यां
“ग्राहक”नो अर्थ “जाणनार” थाय छे. जेम “प्रमाण” पोताना विषयनुं ग्राहक एटले के जाणनार छे तेम
‘नय’ पण पोताना विषयनो ग्राहक एटले के जाणनार छे. तेमां तफावत मात्र एटलो छे के प्रमाण पोताना
विषयभूत पदार्थनुं सर्वदेश–ग्राहक छे, ज्यारे नय तेना एकदेशने ग्राहक छे. ए रीते पदार्थने अने नयने
विषय–विषयीपणुं छे. ज्यां नयने ‘ग्राहक’ कह्यो होय त्यां ग्राहक एटले जाणनार एवो अर्थ थाय छे. आ
बाबतमां पण केटलाक मुख्य शास्त्राधारो आपवामां आव्या छे.