Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष बारमुं : सम्पादक: आसो
अंक बारमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
सर्वज्ञनो हुकम
भगवान सर्वज्ञदेवे पोताना ज्ञानस्वभावने रागथी जुदो
जाण्यो...ने ते ज्ञानस्वभावनो ज आदर करीने तेमां एकाग्रता वडे
सर्वज्ञता–वीतरागता ने पूर्णानंद प्रगट कर्योे. पछी ते भगवाननो
दिव्यध्वनि छूट्यो. ते दिव्यध्वनिमां भगवाने शुं हुकम कर्यो?
भगवान सर्वज्ञदेवे जगतना भव्य जीवोने एवो हुकम कर्यो के हे
जीवो! तमारो आत्मा पण ज्ञानस्वभावी छे, राग ते तमारो स्वभाव
नथी, राग वडे हित नथी, माटे रागनो आदर छोडो ने ज्ञानस्वभावनो ज
आदर करो. ज्ञानस्वभावना ज आदर वडे रागनो अभाव करीने सर्वज्ञता
प्रगट करो. आ रीते सर्वज्ञ भगवाने सर्वज्ञ थवानो ज हुकम कर्यो छे.
सर्वज्ञनो हुकम छे के हे जीव! जो तारे खरेखर मारो आदर करवो
होय तो तुं ज्ञानस्वभावनो आदर कर ने रागनो आदर छोड. सर्वज्ञने
राग नथी एटले रागना आदर वडे सर्वज्ञनो आदर थतो नथी. सर्वज्ञनो
आदर करनार जीव रागनो आदर करे ज नहि. रागथी जे धर्म माने छे
तेणे सर्वज्ञना हुकमनो अनादर कर्यो छे; ने जे जीवे पोताना
ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट कर्या छे ते जीव
सर्वज्ञ थवाना मार्गे चड्यो छे, ने तेणे ज खरेखर सर्वज्ञदेवनो हुकम
मान्यो छे. ते जीव जरूर अल्पकाळमां सर्वज्ञ थशे.
(–पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी)
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)