Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: २३६ : आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) २४८२ : आसो :
६७ श्री केशवलाल खीमचंद वढवाण जैन. चंद्रावतीबहेन. मोहनलाल चत्राभूज.
६७ श्री वाघर काळीदास प्रागजी श्री रूपचंदजी जैन. एक मुमुक्षुबहेन शीव.
हा. त्रंबकलाल छगनलाल जामनगर नेंमीदास खुशालदास. रतिलाल नागरदास.
६७ श्री पोपटलाल छगनलाल तथा जगजीवन चतुरना सगावाला. हीराबहेन
तेमनां धर्मपत्नी कस्तुरबेन लींबडी प्राणजीवन. वसंतलाल व्रजलाल. वसंतबहेन
६७ श्री सूरजबहेन अमृतलाल पारेख राजकोट आणंदजी. तलसाणिया रतिलाल सुखलाल.
६७ श्री रतिलाल हीराचंद राजकोट चंद्रप्रभा तथा जसवंतीना काकी. चंदुलाल
६७ श्री वनेचंद जेचंद राजकोट कोदरलाल. कल्याणभाई लालभाई. भायाणी
६७ श्री तलकचंद अमरचंद लाठी हरिलाल. जीवराज. कानजी जेठालाल. लालचंद
६७ श्री तीलकमंजरीबहेन भोगीलाल अमदावाद रूगनाथ. एक मुमुक्षुबेन. मथुरदास खोडीदास.
६७ शेठश्री जमनादास पुनमचंद अमदावाद चीमनलाल ठाकरशी. घेलीबेन सुखलाल.
१०६० रूा ६७ थी नीचेनी रकमो जुदी जुदी ३२ विध्युतबहेन भोगीलाल. पेथराज काळा.
व्यकितओ तरफथी र म णी क ला ल भा ई चं द . स म र त ब हे न .
सुंदरजी कानजी. एक मुमुक्षु बहेन. नागरदास
सुखलाल. गांधी हीराचंद उगरचंद. मयाभाई ९७५९५/– अंके सत्ताणुं हजार, पांचसो पंचाणुं, आना
जेशंगभाई. हिम्मतलाल वालजी. राजमलजी त्रणपूरा.
सम्यक्त्वना महिमासूचक प्रश्नोत्तर
प्रश्न–कयुं कार्य करनारा जीवो जगतमां विरला छे?
उत्तर–तत्त्वने जाणनार ज्ञानीजनो विरला ज छे, वळी विरला जीवो ज तत्त्वनुं श्रवण करे छे, विरला
जीवो ज तत्त्वनुं ध्यान करे छे, अने विरला जीवो ज तत्त्वने अंतरमां धारण करे छे.–
विरला जाणे तत्त्वने, वळी सांभळे कोई;
विरला ध्याये तत्त्वने विरला धारे कोई.
(–योगसार : ६६)
प्रश्न–शेनाथी सिद्धि पमाय छे?
उत्तर–जे सिद्धया ने सिद्धशे सिद्ध थता भगवान; ते आतम दर्शन थकी, एम जाण निर्भ्रान्त. –पूर्वे जेओ
सिद्ध थया, भविष्यमां सिद्ध थशे अने वर्तमानमां सिद्ध थाय छे ते बधाय निश्चयथी आत्मदर्शन (–सम्यग्दर्शन)
वडे ज सिद्ध थाय छे, एम निःशंकपणे जाणो.
(–योगसार : १०७)
प्रश्न–भगवाने शेने मुक्तिमार्ग कह्यो छे?
उत्तर–
“सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्राणि मोक्षमार्गः” –अर्थात् सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्ष मार्ग छे.
(–मोक्षशास्त्र १–१)
प्रश्न–बधाय दुःख मटाडवानुं परम औषध शुं छे?
उत्तर–जे पुरुष कषायना आतापथी तप्त छे, ईन्द्रियविषयरूपी रोगथी जे मूर्छित छे, अने ईष्टवियोग
तथा अनीष्टसंयोगथी जे खेदखिन्न छे,–ते बधायने माटे सम्यक्त्व परम हितकारी औषधि छे.
(–सारसमुच्चय : ३८)