Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
निःस्पृह योगी प. पू. श्री कानजीस्वामी महाराज की सेवामें
मनपत्र
सवनय भट
पूज्यवर!
हम कानपुर नगरनिवासियों का विशेषकर जैन धर्मानुयायियों का परम
सैभाग्य है कि आपनेिअस नगर को अपनी चरण–रज से पावन किया है। हमारे
हृदय आज असीम हर्ष और उत्साह से परिप्लावित है। वसंत की शीतल, मंद–
सुगंध पवन के सद्रश आपके आगमनने भी हमारे हृदयों में असीम स्फुर्ति भरदी है।
अध्यात्म योगी!
आज जब कि क्षितिज में विश्वविनाशक युद्ध के काले बादल मंडरा रहे हैं,
ऊद्जन और अणु बम मानवता को चुनौती दे रहे है, हिंसा की बिकराल आंधी
आस्था और विश्वास तरु को समूल ऊखाड फेंकने के लिए तत्पर है, धृणा, द्वेष,
दम्भ आदि का अंधकार सारे विश्व को आच्छादित कर रहा है, ऐसे समयमें भी
आप भगवान जिनेन्द्रदेव के अध्यात्मज्ञान–दीप की ज्योति से तम–भ्रान्त विश्व को
आलोकित कर रहे हैं।
ज्ञान–दूत!
िअस युगमें जब कि भौतिकवाद का समस्त विश्व में एकछत्र साम्राज्य
स्थापित हो रहा है, केवळ अर्थ ही मानव के जीवन का एक मात्र लक्ष्य बन चूका
है, आत्मा अज्ञान–अंधकार में भ्रान्त–सी भटक रही हैं, आपने समयसार के गहन
अध्ययन के पश्चात् जिस प्रकार धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझाया है, वह
अवर्णनीय है।
विद्वत्प्रवर!
आपने प्रभावोत्पादक प्रवचनामृत वर्षा से केवल एक दिन के अल्प काल में
ही नगर निवासियों के मनको प्रफुल्लित कर मोह लिया है जिसे हम आजीवन
विस्मृत नहीं कर सकते।
युगप्रतीक!
हमें वेदना सी रहेगी कि अधिक समय तक आपके सत्संग से कृतार्थ न हो
सकें। हम अकिंचन केवल श्रद्धा के दो पुष्प आपके श्रीचरणों में समर्पित कर सकते है।
हम है आपके कृतज्ञः–
कानपुर। श्री दिगम्बर जैन नवयुवक संध
दिनांक १८–२–५७ कानपुर के सदस्यगण
મુદ્રક: – હરિલાલ દેવચંદ શેઠ, આનંદ પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ભાવનગર (સૌરાષ્ટ્ર)
પ્રકાશક: – સ્વાધ્યાય મંદિર ટ્રસ્ટવતી હરિલાલ દેવચંદ શેઠ – ભાવનગર (સૌરાષ્ટ્ર)