कहां हमारा यह पुराना इन्द्रप्रस्थ
प्रवाहित जैनधर्मकी पवित्र गंगामें गोते लगाकर अपना जन्म सफल मान रहे हैं।
इस महोपकार से विनीत हम आपके अत्यन्त आभारी एवं चिरकृतज्ञ हैं।
आज लोग सन्मार्ग पा सके हैं और अपने वास्तविक कल्याण पथ पर चलनेकी
प्रेरणा पा सके है। आपके द्वारा शुद्ध सत्यका निरुपण जनताको एक मंगल मार्ग
सिद्ध हुआ है। आपने भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव–जिनको सच्चा ज्ञान श्री सीमंधर
भगवानकी दिव्यध्वनिसे प्राप्त हुवा था–की वाणीका गूढ रहस्य समझकर उसे
समस्त मुमुक्षुगणके सामने स्पष्ट खोल कर रखा है, जिससे संसारके निरंतर
दुःखोसे संतप्त एवं क्लांत प्राणी शांति पा सकते है।
धन्य है वह जो आपके भी आदर्श रूप सिद्ध होकर आपके द्वारा जनता को यह
दिव्य–भव्य मार्गप्रदर्शक बन विश्ववन्द्य हुए। आपके उपदेशसे सहस्त्रों भाई–बहन जैन
धर्मके शुद्ध तात्त्विक रूपको समझकर साम्प्रदायिकता जैसे दुर्भेध–दुश्छेघ पाश को
तोडकर सच्चे जिन धर्मानुयायी हुए है। सौराष्ट्र अनेक नवनिर्मित मन्दिर व
जिनबिम्ब आपके सच्चे प्रभाव का एक ज्वलन्त उदाहरण है। लाखों प्रतियां जैन
ग्रंथो की प्रकाशित होकर वितरित हो चुकी है। अनेकोने दुर्द्धर ब्रह्मचर्यव्रत आजन्म
धारण किया है, यह आपके ही उपदेशका सत् परिणाम है।