Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
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जैनशासनना चार थांभला
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य देवे रचेला
‘रत्नचतुष्टय’–समयसार, नियमसार, प्रवचनसार ने
पंचास्तिकाय, आ चार शास्त्रोना महिमा बाबत
गुरुदेव भावपूर्वक कहे छे के, अहा! आ चार शास्त्रो तो
जैनशासनना चार थांभला छे.. चारे आराधना आ
चार शास्त्रोमां भरी छे.. शासनना महाभाग्य छे के
आवी वाणी अखंड रही गई. ज्यारे ज्यारे जे जे जीवो
शुद्धरत्नत्रयने पाम्या के पामशे त्यारे त्यारे ते बधा
जीवो अंतर्मुख स्वभावने अवलंबीने ज पाम्या छे ने
पामशे, बीजो मार्ग नथी–आवा अंतर्मुख रत्नत्रयमार्ग
ने प्रकाशवामां आ चार शास्त्रो अजोड रत्नो छे.
‘निज भावना अर्थे’
अने
‘मार्गनी प्रसिद्धि अर्थे’
आ नियमसार मुख्यपणे मोक्षमार्गनुं प्रतिपादक
छे. तेना पहेला सूत्रमां, भगवान कुंदकुंद स्वामी
मांगळिकरूपे श्री वर्द्धमान जिननाथना उत्कृष्ट ज्ञान–
दर्शनने याद करीने–तेने भावीने, तेमने नमस्कार करे
छेः अहो नाथ! आप आवा उत्कृष्ट ज्ञान–दर्शन
शुद्धरत्नत्रयरूप नियमसारनी आराधनावडे पाम्या..हुं
पण शुद्धरत्नत्रयने साधतो साधतो आपना मार्गे आवुं
छुं..शुद्ध रत्नत्रयने निजभावना अर्थे हुं आ शास्त्र रचुं
छुं. मोक्षनो जे शुद्धमार्ग तेने हुं आ शास्त्रद्वारा प्रसिद्ध
करुं छुं. आ रीते ‘निज भावना अर्थे’ अने ‘मार्गनी
प्रसिद्धि अर्थे’ आचार्य भगवाने आ शास्त्र रच्युं छे.
(– प्रवचनमांथी)
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती मुद्रक अने प्रकाशकः
हरिलाल देवचंद शेठः आनंद प्रिन्टींग प्रेसः भावनगर.