Atmadharma magazine - Ank 178
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १प मुं
अंक १० मोे
द्वि. श्रावण
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१७८
आत्मा झणझणी ऊठे छे
आत्मा ज आनंदनुं धाम छे, तेमां अंतर्मुख थये ज
सुख छे-
आवी वाणीना रणकार ज्यां काने पडे त्यां आत्मार्थी
जीवनो आत्मा झणझणी ऊठे छे के वाह! आ भवरहित
वीतरागी पुरुषनी वाणी! आत्माना परमशांतरसने
बतावनारी आ वाणी अपूर्व छे...वीतरागी संतोनी वाणी
परम अमृत छे...भवरोगनो नाश करनार ए अमोघ
औषध छे.