* लब्धबुद्धिओने ज-नहि के अलब्धबुद्धिओने,
* क्षीण कषायपणामां ज होय छे,-नहि के कषाय सहितपणामां होय छे.
-आम आठ प्रकारे नियम अहीं देखवो.
जुओ, आ अनेकान्त; आम ज होय छे ने बीजी रीते होतुं नथी-आवुं मोक्षमार्गनुं अनेकान्तस्वरूप छे.
(१) मोक्षमार्गनुं चारित्र केवुं होय? सम्यक््त्व अने ज्ञानथी युक्त ज होय. अ सम्यक््त्व अने अज्ञानथी
मोक्षमार्ग छे, राग ते मोक्षमार्ग नथी, राग तो बंधमार्ग छे. सरागचारित्रने (व्यवहाररत्नत्रयने) व्यवहारथी
मोक्षमार्ग आ शास्त्रमां ज आगळ कहेशे,-पण त्यां आ नियम लक्षमां राखीने तेनो भावार्थ समजवो जोईए.
अहीं, तो स्पष्ट नियम छे के रागद्वेषसहित चारित्र ते मोक्षमार्ग नथी पण रागद्वेषरहित एवुं वीतरागीचारित्र ज
मोक्षमार्ग छे. आ त्रीजो नियम कह्यो.
मार्ग छे ते बंधनो मार्ग नथी. राग तो बंधनो मार्ग छे, तो ते मोक्षमार्ग केम होय वीतरागचारित्र के जे मोक्षनुं
ज कारण छे ते बंधनुं कारण जरा पण थतुं नथी.-आ चोथो नियम छे.
आत्मामां जेने प्रगटे तेने मार्गनो संदेह टळी जाय, मोक्षनो संदेह टळी जाय, मार्गनी पोताने निःशंकता थई जाय
के आ मार्ग ज छे. मोक्षनो आ मार्ग हशे के बीजो मार्ग हशे-एवो संदेह धर्मीने होतो नथी. आ रीते,
सम्यग्दर्शन-ज्ञानसहित जे वीतरागचारित्र छे ते मोक्षनो मार्ग ज छे, ने अमार्ग नथी. आ पंचम नियम जाणवो.
नथी.-आ छठ्ठो नियम कह्यो.
ज्ञानथी जे सहित छे ते लब्धबुद्धि छे, ने एवा लब्धबुद्धिओने ज मोक्षमार्ग होय छे, जेओ आत्माना स्वसंवेदन
ज्ञानथी रहित छे एवा अलब्धबुद्धिओने मोक्षमार्ग होतो नथी.-आ सातमो नियम जाणवो.
मोक्षमार्ग नथी. कषाय कण तो बंधनुं कारण छे. कषाय कण होवा छतां त्यां पण जेटलुं वीतरागी चारित्र
(कषायना अभावरूप) छे तेटलो मोक्षमार्ग छे, अने जे कषायकण छे ते मोक्षमार्ग नथी, माटे क्षीणकषायपणामां ज
मोक्षमार्ग होय छे ने कषायसहितपणामां मोक्षमार्ग होतो नथी.-एम आठमो नियम कह्यो.