पामीने पण जे मोह–राग–द्वेष उपर अतिद्रढपणे तेनो प्रहार
करे छे ते ज क्षिप्रमेव (जलदी–तरत ज) समस्त दुःखथी
परिमुक्त थाय छे, अन्य कोई व्यापार समस्त दुःखथी
परिमुक्त करतो नथी;–हाथमां तरवारवाळा मनुष्यनी माफक.
Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).
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