Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १प मुं
अंक १२ मोे
आसो
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१८०
पुरुषार्थ
आ अति दीर्घ, सदा उत्पातमय संसारमार्गमां कोई पण
प्रकारे जिनेश्वरदेवना आ तीक्ष्ण असिधारा समान उपदेशने
पामीने पण जे मोह–राग–द्वेष उपर अतिद्रढपणे तेनो प्रहार
करे छे ते ज क्षिप्रमेव (जलदी–तरत ज) समस्त दुःखथी
परिमुक्त थाय छे, अन्य कोई व्यापार समस्त दुःखथी
परिमुक्त करतो नथी;–हाथमां तरवारवाळा मनुष्यनी माफक.
–माटे ज सर्व आरंभथी–सर्व यत्नथी मोहनो क्षय करवा
माटे हुं पुरुषार्थनो आश्रय करुं छुं.
(अमृतचंद्राचार्यदेव)