Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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दीपावली–अभिनंदन अंक (आत्मधर्म खास वधारो)
रत्नत्रयना दीवडाथी दिपावली उत्सव ऊजवीए
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी पूर्ण
आराधनावडे महावीर परमात्मा आजे मोक्ष
पाम्या. परम आनंदमय ए सिद्धपद सर्व
जीवोने परम इष्ट छे, साधक संतोना
हृदयमां एनी स्तुति कोतरायेली छे, अने
आत्मार्थी जीवोवडे ते परम अभिनंदनीय
छे. आवुं सिद्धपद भगवान आजे ज
पावापुरी–धामथी पाम्या; तेनुं स्मरण करी
करीने भक्तजनो हर्षपूर्वक ए सिद्धपदनो
महोत्सव ऊजवे छे.
जेणे मोक्षनी आराधनानो भाव प्रगट
कर्यो तेणे पोताना आत्मामां रत्नत्रयरूपी
दीवडाथी दीपावली महोत्सव ऊजव्यो.
भगवान महावीरना मार्गने पामीने, ज्ञानी
गुरुओनां आशीर्वादथी आपणे पण
पोताना आत्मामां रत्नत्रयनी आराधना
करीए, अने ए रीते रत्नत्रयरूपी दीपकनी
ज्योतथी दीपावली महोत्सव ऊजवीए..
वर्षः १प–१६ (दीपावली–अभिनंदन अंक) वीर सं. २४८४–८प)