Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८पः ११ः
एरोप्लेन बनाववानुं कारखानुं टेलीफोननुं कारखानुं वगेरे मोटा उधोगो बेंगलोर शहेरमां छे.
बेंगलोरनो बे दिवसनो कार्यक्रम पूरा करीने फागण सुद १नी सवारमां संघे त्यांथी प्रस्थान कर्युं.....वच्चे
कांजीवरम् शहेरमां गामथी एक माईल दूर १२०० वर्षना प्राचीन जिनमंदिरना दर्शन कर्या. पू. गुरुदेव रात्रे
अहीं रोकाया हता. संघ रात सुधीमां मद्रास पहोंची गयो हतो.
पुंडी नगरी
पू. गुरुदेव बेंगलोरथी मद्रास आवता वच्चे पुंडीनगरमां जिनमंदिरना दर्शन करवा पधार्या; त्यांना
जिनमंदिरमां अतिप्राचीन अने सुं्रदर छ फूट खड्गासने पार्श्वनाथ भगवान बिराजे छे; तथा आदिनाथ प्रभु
वगेरे प्राचीन प्रतिमाओ तेमज नवो मानस्तंभ छे. अहीं अडधी कलाक व्याख्यान थयुं हतुं अने बहारथी
३००–४०० माणसो गुरुदेवना दर्शने आव्या हता.
मद्रास शहेर
फागण सुद बीजना शुभदिने पू. गुरुदेव मद्रास पधारतां दिगंबर जैन समाजे तेमज गुजराती
समाजे भावभीनुं भव्य स्वागत कर्युं.....स्वागतना मोखरे हाथी हतो.....नगरीमां धामधूमपूर्वक फरीने
स्वागत सेन्डमेरी होलमां आव्युं हतुं. त्यां प्रवचन माटे सुंदर कळामय स्टेज गोठववामां आव्युं हतु. त्यां
लगभग चार हजार माणसोनी मेदनी वच्चे गुरुदेवे मंगलप्रवचन कर्युं मद्रासना भाईओए संघना
उतारा–भोजन वगेरेनी सुंदर व्यवस्था करी हती. सवारे तथा बपोरे प्रवचनमां बे हजार माणसो थता
हता. आजे (फागण सुद बीज) सोनगढमां सीमंधर प्रभुनी प्रतिष्ठानो मंगल दिवस होवाथी रात्रे
जिनमंदिरमां पू. बेनश्रीबेने खास भक्ति करावी हती. फागण सुद त्रीजना दिवसे मद्रास एसेम्बलीना
स्पीकरे गुरुदेवना सन्माननुं प्रवचन ईंग्लीशमां कर्युं हतुं, –जेमां गुरुदेवनी प्रवचनशैलीनो खास महिमा
कर्यो हतो. पं. भरतचक्रवर्ती पू. गुरुदेवना प्रवचननो तालीम भाषामां अनुवाद करीने संक्षिप्तसार
समजावता हता. फागण सुद ४ ना रोज मद्रास दिगंबर जैन समाज तरफथी पू. गुरुदेवने नीचेनुं
अभिनंदनपत्र आपवामां आव्युं हतुं, जे पं मल्लिनाथ शास्त्रीए वांच्युं हतुं ने शेठ कन्नैयालाल जैनना
हस्ते अर्पण करवामां आव्युं हतुं.
।। श्रीजिनाय नमः।।
आदरणीय निश्चयतत्त्वप्रकाशक श्री कानजी स्वामी
के करकमलों में सादर समर्पिंत
अभिनन्दन पत्र
मान्यवर!
आप का शुभागमन मद्रास प्रान्त के लिये अहोभाग्य है। आप सौराष्ट्रप्रान्त के होने पर भी
भारतभर के धर्मबन्धु कहा जाय तो कोई अत्युक्ति की बात नहीं है। महान अध्यात्म तत्त्व के जन्मदाता
श्री कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार आदि ग्रन्थो के प्रचारकार्य ही आप की निष्पक्षता एवं धर्मपरायणता का
ज्वलन्त उदाहरण है। इस से स्वयं ही नहीं बल्कि हजारो नरनारिर्यां स्व–पर तत्त्व को अवलोकन कर
सद्धर्मानुयायी है।
निरभिमानसेवाव्रती
बो सच्ची सेवा करते हैं वे अभिमान को नाममात्र के लिये भी नहीं रखते, इसका आप प्रत्यक्ष
उदाहरण हैं। इस पवित्र सेवाकार्य को करने में कई बाधाओं का सामना करना स्वाभाविक है। फिर भी
आपने इस पर जो द्रढता दिखाई है वह कम महत्व की बात नहीं है। आज यह महान कार्य बीजरूप में न
ह कर बृहद् वटवृक्ष का सा रूप धारण करने लगा है।