अहीं रोकाया हता. संघ रात सुधीमां मद्रास पहोंची गयो हतो.
वगेरे प्राचीन प्रतिमाओ तेमज नवो मानस्तंभ छे. अहीं अडधी कलाक व्याख्यान थयुं हतुं अने बहारथी
३००–४०० माणसो गुरुदेवना दर्शने आव्या हता.
स्वागत सेन्डमेरी होलमां आव्युं हतुं. त्यां प्रवचन माटे सुंदर कळामय स्टेज गोठववामां आव्युं हतु. त्यां
लगभग चार हजार माणसोनी मेदनी वच्चे गुरुदेवे मंगलप्रवचन कर्युं मद्रासना भाईओए संघना
उतारा–भोजन वगेरेनी सुंदर व्यवस्था करी हती. सवारे तथा बपोरे प्रवचनमां बे हजार माणसो थता
हता. आजे (फागण सुद बीज) सोनगढमां सीमंधर प्रभुनी प्रतिष्ठानो मंगल दिवस होवाथी रात्रे
जिनमंदिरमां पू. बेनश्रीबेने खास भक्ति करावी हती. फागण सुद त्रीजना दिवसे मद्रास एसेम्बलीना
स्पीकरे गुरुदेवना सन्माननुं प्रवचन ईंग्लीशमां कर्युं हतुं, –जेमां गुरुदेवनी प्रवचनशैलीनो खास महिमा
कर्यो हतो. पं. भरतचक्रवर्ती पू. गुरुदेवना प्रवचननो तालीम भाषामां अनुवाद करीने संक्षिप्तसार
समजावता हता. फागण सुद ४ ना रोज मद्रास दिगंबर जैन समाज तरफथी पू. गुरुदेवने नीचेनुं
अभिनंदनपत्र आपवामां आव्युं हतुं, जे पं मल्लिनाथ शास्त्रीए वांच्युं हतुं ने शेठ कन्नैयालाल जैनना
हस्ते अर्पण करवामां आव्युं हतुं.
श्री कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार आदि ग्रन्थो के प्रचारकार्य ही आप की निष्पक्षता एवं धर्मपरायणता का
ज्वलन्त उदाहरण है। इस से स्वयं ही नहीं बल्कि हजारो नरनारिर्यां स्व–पर तत्त्व को अवलोकन कर
सद्धर्मानुयायी है।
निरभिमानसेवाव्रती
आपने इस पर जो द्रढता दिखाई है वह कम महत्व की बात नहीं है। आज यह महान कार्य बीजरूप में न
ह कर बृहद् वटवृक्ष का सा रूप धारण करने लगा है।