कानजीस्वामी को हम अपने बीच में पाकर अपने को धन्य
मान रहे हैं।
आपने यात्रा प्रसंग को लेकर इस वंसुधरा पर विहार
है वह आदरणीय है।
आपने एक वह महान् विशाल द्रष्टि पाई है जिसमें
जिसमें सच्चे सुख की अनुभूति प्रतिबिंबित होती है।
आप एक उस साधना में लगे हुये हैं जिसके बल पर
होती हैं। विरले प्राणी इस साधना को समझते हैं जिसको
आपने अपने सतत प्रयत्न से प्राप्त किया है।
हम देखते हैं कि जगत सरागी है और राबगर्द्धक
फसता जाता है किन्तु आपने अपने स्वानुभवन से उस परम
वीतराग तत्त्व को देखा है एवं उसीका रसास्वादन किया है
जिसमें सच्चे सुख की झलक है।
आपका दिव्य उपदेश हम भव्य जीवों को अमृत पान
सुख और उनके कारणों का निरूपण करते है तब भोली
जनता स्वयं अपने गन्तव्य मार्ग का निर्णय कर लेती है और
सच्चे पथ का पथिक बन जाती हैं।
से पूज्य नहीं होता।