ATMADHARMA Reg. N. Bo. 4787
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“जी व ने गो त वो क््यां?”
प्रश्न:– आंख उघाडीने बहार जोतां जड देखाय छे ने आंख मींचतां अंधारुं देखाय छे...तो
जीवने गोतवो कई रीते?
उत्तर:– भाई, जो तारे जीवने जाणवो होय तो पहेलां तेनुं स्वरूप नक्की कर...के जीव
ज्ञानस्वरूप छे....अरूपी छे....अरूपी होवाथी ते आंखवडे देखाय नहि. एटले, आंख ते जीव नथी तेमज
आंख ते जीवने जाणवानुं साधन पण नथी. आंख तो जड वस्तु छे....ते कोईने जाणवानुं कार्य करती ज
नथी. आंख निष्क्रिय होय अथवा बंध होय त्यारे पण अंतरमां जाणवानी क्रिया तो थई ज रही छे,
एटले ते जाणवानी क्रिया आंखथी जुदी छे, तेम ज ते क्रिया करनारो पण आंखथी जुदो छे, ने ते ज
जीव छे. माटे आंखवडे तुं जीवने शोधवा मथीश तो ते कदी नहि मळे....आंखनी अंदर वसतो होवा
छतां पण आंखवडे ते नहीं मळे....ज्ञानक्रियामां तेने शोध....ज्ञानक्रियामां ज ते रहेलो छे.
जे पोते आंखथी जुदो छे ने आंखनो विषय नथी तेने आंखवडे शोधवानो प्रयत्न करवो–ए
तो मूळ प्रयत्नमां ज भूल छे.–केवी भूल? के जेम कोई मडदांने जीवंत मानीने तेनी साथे वातो
करवानो व्यर्थ प्रयत्न करे....तेम आ पण आंख तो मडदा जेवी अचेतन होवा छतां तेने जीवंत–चेतन
मानीने तेनी पासे जाणवानुं कार्य कराववा मांगे छे....भाई, तुं भेदज्ञानचक्षु उघाडीने आंखथी जुदा
तारा आत्माने देख....तो उघाडी आंख हो के मींचेली आंख हो–पण तने जडथी भिन्न तारो
चैतन्यप्रकाश देखाशे....अने तेने देखवाथी तुं आनंदित थईश.
आत्मा जुदो काढीने केम नथी देखाडता?
प्रश्न:– तमे देह अने आत्मा जुदा कहो छो, पण जो जुदा होय तो आत्मा जुदो काढीने केम नथी
देखाडता?
उत्तर:– भाई! सिद्धभगवंतो आत्माने देहथी अने विभावथी जुदो पाडीने स्पष्ट बतावी ज
रह्या छे....पण तुं न देख एमां बीजानो शो दोष? सिद्धभगवान तो देखाडे छे के ‘जो, देख! ....आ
देहथी भिन्न आत्मा! तारो आत्मा पण आवो ज छे’ –परंतु एवा आत्माने जोवा माटे आंखो तो
जोनारनी पोतानी जोईशे ने! बहारनी जड आंखोथी आत्मा देखाय तेवो नथी, आत्माने जोवा माटे
तो ज्ञानचक्षु जोईशे एटले पहेलां तेनुं ज्ञान करवुं पडशे.
जेम कोई देखतो माणस हिमालय पर्वतने नजरे देखीने प्रमोदथी कहे के जुओ, अहीं हिमालय
केवो सरस देखाय छे! त्यारे कोईक आंधळो माणस हिमालयने न देखे अने कहे के जो तमे हिमालयने
नजरे देखो छो तो अमने केम नथी देखाडता?” पण भाई! हिमालय तो तारी सामे हाजर छे, पण तुं
आंख ऊघाडीने जो तो तने देखायने?” तेम देहथी भिन्न चिदानंदआत्मा पोतानी पासे ज छे अने
ज्ञानीओ अंतरमां अनुभवीने ते देखाडी रह्या छे.....पण जीव पोते ज्ञानचक्षु खोले त्यारे देखायने!!
भेदज्ञानद्रष्टिथी जोतां अत्यारे पण जीव अने शरीर जुदा ज छे, बंनेना लक्षण जुदां छे ने बंने
भिन्नभिन्नपणे ज पोतपोतानुं कार्य करी रह्या छे.
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशक: हरिलाल देवचंद शेठ: आनंद प्री. प्रेस भावनगर