Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष सत्तरमुं: अंक ४ थो संपादक: रामजी माणेकचंद दोशी महा : २४८६
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श्री गुरुना चरणकमळनी सेवानो प्रसाद
निर्मळ चित्तवाळा पुरुषो, गुणमां मोटा एवा
गुरुनां चरणकमळनी सेवाना प्रसादथी, चैतन्य
परमतत्त्वने पोताना अंतरमां अनुभवे छे. जुओ,
आ गुरु अने तेमनी सेवानो प्रसाद, गुरु गुणमां
मोटा होय एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञानादि गुणोथी
जेओ महान छे, एवा गुरु–शिष्यने कहे छे के देहमां
रहेलो होवा छतां पण, देहथी भिन्न एवा तारा
परमचैतन्यतत्त्वने अंतरमां देख. देहमां रह्या छतां
पण चैतन्यनो अनुभव थाय छे गुरुनां आवा
वचन सांभळीने निर्मळ चित्तवाळो शिष्य अंतरमां
तद्रूप परिणमी जाय छे...गुणमां मोटा गुरु जे
प्रमाणे कहे छे ते प्रमाणे शिष्य परिणमी जाय छे,–
ए ज गुरुना चरणनी खरी सेवा छे...ने एवी
सेवाना प्रसादथी ते शिष्य अंतरमां पोताना
आत्मानो अनुभव पामे छे.
–नियमसार गा. १८० उपरना प्रवचनमांथी
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