Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : १९६
अमर थवानो उपाय
(अमरेली शहेरमां पू. गुरुदेवना प्रवचनोमांथी)
* देहमां रहेलो आत्मा संसारभ्रमणथी थाकीने मोक्षनो उपाय करवा माटे ज्यारे तैयार थाय छे
त्यारे ते केवुं भेदज्ञान करे छे, तेनी आ वात छे. सुखदायक एवो पवित्र आत्मस्वभाव, अने दुःखदायक
एवा मलिन रागादि भावो, ए बंनेने भिन्न नहि जाणवाथी, रागादिना ज अनुभवमां वर्ततो जीव
अज्ञानभावथी दुःखी छे ने संसारभ्रमण करे छे. हवे जेने एम थयुं छे के अरे! आ रागना वेदनमां
मने शांति नथी, मारी शांतिनो उपाय आ रागमां न होय; माटे रागथी जुदो थईने हुं मारी शांतिनो
उपाय शोधुं.
* आवा शोधक जीवने शांतिनो उपाय आचार्यदेव बतावे छे : हे भाई! तारो ज्ञानस्वभावी
आत्मा पवित्र छे, सुखरूप छे, शरणरूप छे, ने रागादि तो मलिन छे, दुःखरूप छे, अशरण छे.–आम ते
बंनेना भिन्नभिन्न स्वभावने तुं ओळख. ए रीते बंनेने भिन्नभिन्न ओळखतां ज तारुं ज्ञान रागथी
जुदुं पडीने स्वभावमां परिणमशे ने तने तारा स्वभावनी शांतिनुं वेदन थशे.
* देहथी ने रागथी अत्यंत भिन्नपरिणामे जेनो आत्मा परिणमी रह्यो छे, मुक्ति अने
केवळज्ञान जेणे साधी लीधां छे एवा भगवान सर्वज्ञपरमात्मा, तेमणे ते परमात्मदशा कयांथी प्रगट
करी? आत्माना स्वभावमां ते ताकात हती, तेमांथी ज ते प्रगटी छे, कोई संयोगमांथी ते प्रगटी नथी.
(लींडीपीपरमांथी चोसठपोरी तीखास प्रगटे छे ते द्रष्टांतनी जेम.)
* पोताना परमात्मस्वभावमांथी बहार नीकळ्‌यो–खस्यो–संसर्यो ते संसार छे; ते संसार कयांय
बहारमां नथी पण जीवनी पर्यायमां ज संसार छे. जीवनी बहिर्मुख पर्याय ते संसार छे, ने जीवनी
अंतर्मुख पर्याय ते मोक्षमार्ग छे. आ रीते संसारमार्ग के मोक्षमार्ग जीवनी पर्यायमां ज छे.
* अहीं मुख्य वात ए छे के स्वभाव शुं अने विभाव शुं, तेनुं भेदज्ञान करवुं. विकारी
लागणीओमां एकत्वबुद्धि ते ज संसारनुं मूळ छे; केमके विकार साथे एकत्व माने ते तेनाथी छूटो कयारे
पडे? विकारथी भिन्न शुद्ध ज्ञानस्वभावने न जाणे त्यां सुधी सम्यग्दर्शन पण न थाय; तो सम्यग्दर्शन
वगर मोक्षमार्ग तो कयांथी होय?
* संसार एटले दोष; दोष ते कोई कायमी वस्तु नथी परंतु गुण कायमी वस्तु छे; ते गुणनी
* गुणने अने दोषने विरुद्ध स्वभावपणुं छे...जेणे दोषमां (विकारमां, रागमां) पोतानी
एकता मानी तेणे पोताना गुणस्वभावनो विश्वास न कर्यो, एटले स्वभावनो अनादर करीने दोषनो
आदर कर्यो, ते जीव दोषनो नाश कयांथी करी शकशे?
* जेणे स्वभाव अने विभावनुं भेदज्ञान कर्युं, गुणने अने दोषने जुदा जाण्या, ते जीव स्वभाव
तरफ झूकशे ने विभावथी विमुख थशे...एटले बंधनथी पाछो वळीने मोक्षमार्ग तरफ ते वळशे.
* भेदज्ञाननी अपूर्व कळा केवी होय? ने ते प्रगटतां आत्मामां शुं थाय, तेनी आ वात छे.
आत्मा अने रागादिने जुदा जाणनारुं भेदज्ञान रागादिथी छूटुं पडेलुं छे, ने आत्माना आनंद तरफ
झूकीने तेनुं वेदन करवामां तन्मय थयेलुं छे. भेदज्ञानीनी अंर्तपरिणति एवी अलौकिक थई जाय छे–
जाणे के आखो आत्मा ज पलटी गयो! भेदज्ञान थतां आत्मानी आखी दशा ज पलटी जाय छे.
* आवा भेदज्ञान वगर अनंतकाळथी जीव संसारमां भावमरणे मरी रह्यो छे, ते भावमरण
केम अटके अने आत्मानुं अमरपद केम पमाय तेनी आ वात छे. भेदज्ञानवडे ज भावमरणथी छूटीने
चैतन्यनुं अमरपद पमाय छे...अमृतमय एवुं जे मोक्षपद ते ज आत्मानुं अमरपद छे, ने तेनी प्राप्ति
आवा भेदज्ञानथी ज थाय छे.