Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : १९६
मोक्ष–मार्गना आश्रये
कदी बंधन थतुं नथी

पुण्य–पाप अधिकारमां आचार्यदेव कहे छे के : अशुभकर्म के शुभकर्म ए बंने कर्मो जीवने
संसारनुं कारण छे, तेथी तेमनामां तफावत नथी, तफावत वगर ज ते बंने निषेधवा योग्य छे.
त्यां शिष्य पूछे छे के प्रभो! कोई कर्म तो मोक्षमार्गने आश्रित छे अने कोई कर्म
बंधमार्गने आश्रित छे,–तो ते बंनेनो निषेध शा माटे कहो छो? अथवा ते बंनेने समान शा माटे
कहो छो? मोक्षमार्गमां वर्तता शुभकर्मने आदरणीय कहोने?
आचार्यदेव तेने समजावे छे : सांभळ भाई! मोक्षमार्गमां वर्तता शुभकर्मने तुं
मोक्षमार्गना आश्रये माने छे ते तारी भूल छे, ते शुभकर्म पण बंधमार्गने आश्रित ज छे. केवळ
जीवमय एवो जे मोक्षमार्ग, तेना आश्रये कोई पण कर्म बंधातुं नथी. जे संसारमां प्रवेश
करावनारुं छे एवुं कर्म मोक्षमार्गना आश्रये केम उत्पन्न थाय? न ज थाय. ते कर्म तो बंधमार्गना
आश्रये ज छे. मोक्षमार्ग अने बंधमार्ग जुदा छे–ए वात खरी, पण तेथी कांई शुभ ने
अशुभकर्मनो आश्रय जुदो जुदो होवानुं सिद्ध थतुं नथी. शुभ कर्म मोक्षमार्गना आश्रये ने
अशुभकर्म बंधमार्गना आश्रये–एम शुभ–अशुभना आश्रयनी भिन्नता नथी, बंने एकला
बंधमार्गने ज आश्रये छे तेथी बंने एक ज छे. मोक्षमार्गमां वर्तता जीवने शुभकर्म देखीने, जे
अज्ञानी मोक्षमार्गना वास्तविक स्वरूपने नथी ओळखतो तेने, एम थाय छे के आ शुभकर्म
मोक्षमार्गना आश्रये बंधायुं.–परंतु खरेखर एम नथी, ते शुभकर्म पण बंधमार्गने ज आश्रित छे.
जो मोक्षमार्गने आश्रित पण कर्म बंधातुं होय तो तो कर्मथी छूटकारानो कोई उपाय ज न रह्यो!–
परंतु जेम बंधमार्गना आश्रये कदी मुक्ति नथी थती, तेम मोक्षमार्गना आश्रये कदी बंधन थतुं
नथी. माटे,–बंधमार्गने आश्रये वर्ततुं एवुं अशुभ के शुभ बंने कर्म मोक्षार्थीए निषेधवा योग्य
छे; अने जीवना आश्रये वर्ततो एवो मोक्षमार्ग,–के जे कर्मना बंधनुं कारण नथी पण मोक्षनुं ज
कारण छे ते ज आदरपूर्वक सेववा योग्य छे. –समयसार गा. १४प ना प्रवचनमांथी.
सर्वे मनोरथनी सिद्धिनो उपाय
जे जीव! तारा चिदानंदस्वभावनुं शरण
लेतां सर्व मनोरथनी सिद्धि थई जशे. कया
मनोरथ? – के मोक्षनां; मुमुक्षुने मोक्ष सिवाय
बीजा शेनां मनोरथ होय?