Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Reg. No. B. 4787
धर्मात्मा जीव
मिथ्याद्रष्टिने
सम्यग्द्रष्टि
बनावे छे
सम्यग्द्रष्टि जीव मिथ्याद्रष्टिने कहे छे के भूल
मा, भूल मा! तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा!
अने परने पोतानी वस्तु मान मा! ए तारी वस्तु
नथी माटे तारामां शांत था. एम धर्मात्मा जीव
मिथ्याद्रष्टिने पोताना शांतरसमां लीन करावे छे;
तेनो भ्रम मटाडी, यथार्थ स्वरूप समजावी,
शांतरसमां तेने लीन करी सम्यग्द्रष्टि बनावे छे.
(–समयसार प्रवचनो भाग ३)
दुनियाने
भूल!...
आत्मरसमां
मस्त था!
चैतन्यतत्त्व शुं छे तेनुं एकवार
कुतूहल तो कर. मरीने...एटले गमे तेटली
प्रतिकूळता वेठीने पण कुतूहल कर. अनंतवार
देहने अर्थे आत्मा गाळ्‌यो, पण हवे एकवार
आत्माने अर्थे देह गाळ तो भव रहे नहि.
दुनियाने भूल! दुनियानी परवा छोडीने
आत्माना रसमां मस्त थई जा. पुरुषार्थ करी
अंतर पडदाने तोडी नांख.
(–समयसार प्रवचनो भाग ३)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशक : हरिलाल देवचंद शेठ : आनंद प्री. प्रेस–भावनगर