Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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सामे पाने प्रसिद्ध थयेल तामील अभिनंदन पत्रनुं गुजराती भाषांतर
सद् धर्मनी वृद्धि हो!
“स म य सा र”
नामना महान तत्त्वगं्रथ उपर विस्तृत प्रवचनो करता थका
सारा देशमां सद्धर्मनो प्रचार करनार
श्री कानजीस्वामीजी
नां कर कमळोमां
जिनकांचीना जैन समाजद्वारा ता. १४–३–प९ ना रोज सादर समर्पित
* स्वागत प त्र *
जैन मतना गौरवने माटे अलंकारभूत श्री कानजीस्वामीजी!
आपना द्वारा जैनधर्मनी वृद्धि थई रही छे ते देखीने अमे–जिनकांचीना जैनो महान
खुशीनी साथे आपनुं स्वागत करीए छीए.
ज्ञानना प्रकाश स्वरूप!
“संसारनी प्रीतिनो विच्छेद करीने अरहंत भगवान उपर प्रीति करो, केम के ते प्रीति
पण संसारप्रीतिनो विनाश करनार छे.” –(तिरु क्कुरल तामिल काव्य)
एलाचार्य (कुन्दकुन्द आचार्य) ना उपरोक्त वचनानुसार शिक्षा धारण करीने आप
अहिंसा अने सत्यना मूळरूप जिनधर्मने यथावत सिद्ध करो छो. आत्मलाभनी जिज्ञासु प्रजा
आपना उपदेशनो सार समजीने घणो लाभ मेळवी रही छे. आपनो ज्ञानप्रकाश मात्र
सौराष्ट्रप्रान्तमां ज नहीं परंतु आखा देशमां प्रकाशीत थई रह्यो छे. श्री महावीर भगवानना
शासनना साचा प्रतिनिधिस्वरूप श्री कुंदकुंदाचार्यना सद्वचनने सारी रीते समजीने, आजे बे
हजार वर्ष बाद आप लाखो जीवोने साचा मार्गे दोरवा माटे मार्गदर्शी बन्या छो. आपने
देखीने अपरिमित संतोषपूर्वक अने हाथ जोडीने नमस्कार करीए छीए.
हे आत्मवशी, अहिंसा स्वरूपी!
ज्यां आपनुं आगमन थयुं छे एवुं आ कांजीनगर एक जमानामां विश्वविद्यालय
अने धर्मशाळा वगेरेथी घणुं उन्नतिना मार्ग पर हतुं. जैनोनी ते ख्यातिने आजकाल पण
ईतिहास स्पष्ट बतावी रह्यो छे. आजे पण आ शहेर दक्षिण भारतना जेनोने माटे
सम्मेदशिखर जेवुं गणाय छे. आवा आ शहेरमां उत्तर भारत तथा दक्षिण भारतथी
आवनारा यात्रिको माटे अने विद्याध्ययन करनारा छात्रो माटे एक धर्मशाळानी खास
आवश्यकता छे. आपना कांचीनगर पधार्यानी यादीरूपे आ कमी पूरी थाय तो ते घणी
चिरस्मरणीय अने प्रशंसनीय बनशे. अंतमां नमस्कारपूर्वक स्वागत करीने विरमीए छीए.
नमस्कार.
कांचीपुरम् आपना
१४–३–प९ कांची जैन साहित्यसंघ