वैशाख: २४८६ : २१:
पूज्य श्री कानजीस्वामीना करकमळमां समर्पित
* अभिनन्दन पत्र *
(सामे पाने छपायेला संस्कृत अभिनंदन–काव्यनो गुजराती भावार्थ)
सर्व जगतमां प्रसिद्ध महिमावंत, अध्यात्मविद्यामां सूर्यसमान, अने
मिथ्यात्वरूपी मोहांधकारने विखेरी नाखवा माटे उदयमान ज्ञानभानु, एवा हे स्वामी!
सकल जैनतीर्थोनी यात्रा करतां करतां क्रमेक्रमे, मारा सौभाग्यथी आप मारा देशमां
पधार्या....आपनुं स्वागत हो....स्वागत हो. (१)
आ जगतमां आत्मभ्रांतिथी भूलेला जीवोने माटे जेओ मार्गना समुद्योतक छे,
सर्वना हितने माटे निष्पक्ष उपदेश दईने जेओ जिज्ञासुजीवोनो अज्ञानमांथी सततपणे
उद्धार करे छे, अने जेओ सर्वेजनो प्रत्ये अनुकम्पावाळा छे एवा आ सत्पुरुष
सज्जनोवडे आदरपूर्वक सेववा योग्य छे. (२)
आ भारतवर्षनी पश्चिमदिशामां आवेला कच्छदेश (खरेखर कच्छ नहि पण
कच्छनी बाजुमां आवेल सौराष्ट्र देश) मां सोनगढ नामना श्रेष्ठ विशाळ नगरने जेओ
शोभवी रह्या छे पहेलां जेओ श्वेताम्बरअनुयायी हता परंतु पछी श्री कुंदकुंदस्वामीकृत
निश्चयनयप्रधान समयसारद्वारा जेमने आत्मविवेक जागृत थयो (३)
.... अने तेथी शुद्ध जैनमतने (दिगंबर जैनधर्मने) हृदयमां धारण करीने,
धारावाही गंभीर भाषणवडे सर्वत: तेनो उद्योत करवामां कुशळ, तथा सद्धर्मामृतनी
वर्षा करीने अध्यात्मविद्यारूपी कृषिने महान प्रतिभाद्वारा अतिशय प्रफुल्लित करनार
एवा श्री कानजीस्वामी मारा उपर अनुग्रह करीने अहीं पधार्या. (४)
हे कानजीस्वामी! आप जड–चेतननी एकत्वबुद्धिने क्षीर–नीरवत स्पष्ट भेदी
नाखनार छो अने भेदज्ञानरूपी कुहाडा वडे महामिथ्यात्वरूप वेलने छेदी नाखनार छो;
आपनुं चित्त शुद्धभावरूप विभवथी अलंकृत छे, आप चैतन्यचिंतामणिनी झळहळती
प्रभा वडे मोहना नाशक छो अने ममताजन्य दुःखने दग्ध करवा माटे दावानळ समान
छो. (प)
चिरकाळथी जेनुं चित्त आपना दर्शन माटे तलसतुं हतुं एवा मने स्वयंमेव
आपनो समागम थयो–आप सामेथी मारा आंगणे पधार्या....अहा प्रभो! खरेखर
मारां पुरातन पापो नष्ट थईने सुकृत्य सफळ थयां छे. (६)
आ रीते श्रद्धापुष्पोथी गुंथित आ तुच्छ उपहार आपनी सेवामां अर्पण करुं छुं,
रचयिता: आपश्रीना विनीत
पं. श्रुतसागर जैन, सकल दिगंबर जैन समाज
न्यायकाव्यतीर्थ शाहपुर