ATMADHARMA Reg. No. B. 4787
Indor nagarImAn ujavAyelo gurudevano janmotsav
gurudevane abhinandan granth samarpaN karavA mATe thayel prastAv
pU guurudevano mangal janmotsav vaishAkh sud bIje anek sthaLe UjavAyo; IndoramAn paN
gurudevano janmotsav utsAhathI UjavAyo hato. ane te vakhate ek prastAv paN karavAmAn Avyo
hato...A sambandhamAn IndorathI Avel samAchAr ahIn prakAshit karIe chhIe–
“दिनांक २७–४–६० मिती वैशाख शुक्ला २ को श्रीपूज्य कानजीस्वामी का ७१ वां
जन्मदिवस इन्दोर लशकरी मंदिरमें मनाया गया। रात्रिको जैनरत्न शेठ माणकचन्दजी शेठी
मल्हारगंज इन्दोर की अध्यक्षतामें सभा की गई, उसमें जैनसिद्धान्तमहोदधि पं. नाथुलालजी
शास्त्री, पं. कोमलचन्दजी एडवोकेट. जे. लालचन्दजी, प्रकाशचन्दजी पांड्या, फूलचन्दजी
पांड्या और अमृतलालजी हंसराजजी के स्वामीजीके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं अपूर्व सेवा पर
भाषण हुए। सभापतिजीने जो प्रस्ताव रखा उसकी प्रतिलिपि सेवामें प्रेषित की जा रही हैः–
भारत के महान आध्यात्मिक संतोमें आत्मार्थी सत्पुरुष पूज्य श्री कानजीस्वामीका विशिष्ट
स्थान है। आप जैनधर्मका मर्मज्ञ, पूर्ण ब्रह्मचारी एवं प्रभावशाली वक्ता है, जिनके सदुपदेशसे
सौराष्ट्रके एवं अन्य स्थानोंके सहस्त्रों भाइयों व बहनों के ज्ञाननेत्र खुलकर उन्हें सन्मार्गका प्रतिबोध
प्राप्त हुआ है। स्वामीजी की ७१ वीं जन्मगांठ पर आज इन्दौर के दि. जैन बन्धुओंकी यह सभा
उनकी सेवाओंका अभिनन्दन करती हुई चिरायु कामना करती है और यह योजना प्रस्तुत करती
है कि जिनशासनप्रभावक स्वामीजी को एक अभिनन्दन ग्रंथ तैयार कर समर्पित किया जाय।”
सर्व सम्मतिसे स्वीकृत
हः माणकचन्द शेठी
सभापति
gurudev pratye abhinandanarUp A prastAv karavA mATe IndoranI adhyAtmapremI janatAne ame
abhinandan ApIe chhIe ane temanA A prastAvamAn “Atmadharma” potAno sAth purAve chhe.
janmotsavanA upalakShamAn Indorano sandesh
pU. gurudevanA 71 mA janmotsav prasange IndorathI sar hukamIchandajI sheThanA suputra bhaiyAsAheb shrI
rAjakumArasinhajI taraphathI Avel sandesh nIche mujab chhe.
“हमें यह जानकर बडी प्रसन्नता हुई कि आत्मार्थी सत्पुरुष श्री कानजीस्वामीजी
महाराजका ७१ वां जन्मजयंति महोत्सव आप उनके जन्मस्थान उमरालामें मना रहा हैं। यह
एक अत्यंत महान दुर्लभ लाभ है। मैं इस अवसर पर उपस्थित होकर अवश्य धार्मिक लाभ
लेता परन्तु कार्यवश ऐसा न हो सकेगा अतएव आप सब लोगोंसे क्षमा चाहता हुआ आपके
उत्सवकी सफलता की कामना करता हुं।
अध्यात्ममूर्ति श्री कानजीस्वामीने जो दिगंबर जैनधर्मका प्रचार किया है वो पिछली कई
शताब्दियोंमें अभूतपूर्व है। अनेकों जिनमंदिरोंकी स्थापना तथा सन्मार्ग से भटके हुए लोगोंको
आत्मधर्मका उपदेश दे उन्हें मार्गदर्शन दिया है ऐसे संतप्रवरके लिए समाज जो कुछ भी
आदर–सन्मान करे वह उनका नहीं वरन अपनी समाजको ही गौरवान्वित करना है। आपके
सद््प्रयासमें मेरा पूर्ण सहयोग है।
भवदीय
राजकुमारसिंह
shrI digambar jain svAdhyAy mandir TrasTavatI mudrak ane
prakAshak: harilAl devachand sheTh : Anand pri. pres–bhAvanagar