Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960).

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ATMADHARMA Reg. No. B. 4787
श्री
जय जिनेन्द्र
जगविख्यात ‘समयसार’ नामक ग्रंथके बारमें
अच्छे अच्छे व्याख्यान देकर दुनियाभर में सर्वत्र सद्धर्मको
प्रकाशित करनेवाले श्रीयुत कानजीस्वामीके चरणकमलों पर
जिनकांचीके जैनलोगोसें सविनय समर्पित
स्वागतपत्र
जैन तत्त्वप्रकाशक श्रीमान् कानजीस्वामीजी!
जैनधर्मको बहुत खुबीसे पालन करनेवाले आपको देख कांची के जैनलोग
बडी खुशीके साथ सप्रणाम स्वागत करतें है।
भो ज्ञानप्रकाशप्रदीपक!
श्री एलाच्चार्यजीकी जो अमरवाणी–याने भगवान साक्षात् निलेंप उसका
आदर कमाना इस महावाक्य के अनुसार–अहिंसा, सत्य, औन्नत्य आदि
गुणत्रयस्वरूप धर्मकी प्रतिष्ठा करते हैं। आत्माभिमानी लोग आपके भव्य भाषण
सुनकर महत्कल्याण को प्राप्त हो रहे हैं। आपकी ज्ञानज्योति केवल सौराष्ट्र पर ही
नहीं वरन् सारे भारत पर प्रज्वलित हो रही है।
दो हजार साल के बाद आज भी श्री महावीर के सिद्धान्त प्रसिद्ध उपपुरुष
होनेवाले भगवान श्री कुन्दकुन्द के अच्छेअच्छे व्याख्यानको जानकर लाखों सज्जनो
आत्मीयमार्ग पर मग्न होकर सादर प्रणाम करते हैं।
आत्मज्ञानप्रवाचक अहिंसाभूर्ति!
आपके समागमप्राप्त श्री कांचीशहर एक समय प्रसिद्ध जैन विश्वविद्यालय
धर्मशाला आदिसे मशहूर होनेका भव्य समाचार वर्तमान इतिहास जरूर कहेगा,
और इस इतिहासप्रसिद्ध महानगरको दक्षिण प्रांतीय सम्मेदशिखर कहलाया
जाता है। दक्षिण व उत्तर देशसे आनेवाले जैनयात्री तथा विद्यार्थीलोगोंको इस
कांची पर रहनेमें एक धर्मशालाका अभाव बडी कमी है। आपकी कांची–यात्राका
स्वागत करते हुऐ उपरोक्त कमीको पूरा करनेकी आशा प्रकट करते हुए हम
वारंवार आपके आनेकी प्रार्थना करते है।
प्रणाम
कांचीपुरम् –आपके शुभागमनसे प्रफुल्लित होनेवाले,
१४–३–५९ एवं, कांची जैन साहित्यसमिति
શ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાય મંદિર ટ્રસ્ટવતી મુદ્રક અને
પ્રકાશક: હરિલાલ દેવચંદ શેઠ: પ્રી. પ્રેસ–ભાવનગર