मोहममताकी प्राचीरको चीर आपने शुद्ध आत्मतत्त्व का वास्तविकस्वरूप हृदयंगत कर
वाणीका सबल सम्बल प्राप्तकर स्व–पर भेदज्ञानके द्वारा आत्मा को आत्मा, और परको पर
जाननेकी सफल साधना की है। आपकी इस साधनाकी हम हार्दिक अनुमोदन करते हैं।
आपने अपनी अन्तर्मुखी आत्मश्रद्धासे आत्मनिधियोंकी जिस प्रकार विभासित किया है
का प्रकाश किया है एवम् निश्चय–व्यवहार, उपादान निमित्तके बीच सच्चा समन्वय कर धर्मकी
सत्प्ररुपणा की है।
श्री १०८ गुरुदत्तादि मुनियोंकी निर्वाणभूमि होनेंसे यह द्रोणगिरिक्षेत्र परमपवित्र सिद्धक्षेत्र
अनुपम स्थल है। पूज्य क्षुल्लक श्री गणेशप्रसादजी वर्णी महाराजने इस स्थान पर कई कई
महिनो तक एकान्त साधना की है। प्रान्तीय जनतामें जैनधर्म का वास्तविक ज्ञान प्रसारित हो
इस उदेश्यसे यहां पुज्य वर्णीजीद्वारा
क्षेत्रीय कमेटीने मलहरा में ‘जनता हाइस्कुल’ के नामसे एक माध्यमिकशाला भी स्थापित की
है जो थोडे ही समयमें राजमान्य हो जैनाजन जनतामें समानभावसे शिक्षाका प्रसार कर रही है
आपकी भाषामें ओज है, प्रवाह है, प्रभाव है, और अनुपम आकर्षण, वही कारण है कि
रहा है। हमारा यह सहधर्मी वात्सल्यभान उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता रहे इस भावनाके साथ हम
आपका एकबार पुनः अभिवादन करतें हैं।