Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960).

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(દક્ષિણ તીર્થયાત્રા પ્રસંગે)
अध्यात्मिकसन्त श्रीमान् पूज्य कानजीस्वामीकी सेवामें
सादर समर्पित
अभिनन्दन–पत्र
“ “
परम सन्तः–
मोहममताकी प्राचीरको चीर आपने शुद्ध आत्मतत्त्व का वास्तविकस्वरूप हृदयंगत कर
मानव जीवनको सफल बनाया है। प्रातःस्मरणीय श्रीमत्पूज्य कुन्दकुन्दभगवानकी पीयुषवर्षिणी
वाणीका सबल सम्बल प्राप्तकर स्व–पर भेदज्ञानके द्वारा आत्मा को आत्मा, और परको पर
जाननेकी सफल साधना की है। आपकी इस साधनाकी हम हार्दिक अनुमोदन करते हैं।
आत्मतत्त्वान्वेषिन्ः–
आपने अपनी अन्तर्मुखी आत्मश्रद्धासे आत्मनिधियोंकी जिस प्रकार विभासित किया है
उससे अनेक भव्यात्माओं को प्रेरणा मिली। आपने अपनी परीक्षा–प्रधानताकेद्वारा धर्मके स्वरूप
का प्रकाश किया है एवम् निश्चय–व्यवहार, उपादान निमित्तके बीच सच्चा समन्वय कर धर्मकी
सत्प्ररुपणा की है।
अतिथिवरः–
श्री १०८ गुरुदत्तादि मुनियोंकी निर्वाणभूमि होनेंसे यह द्रोणगिरिक्षेत्र परमपवित्र सिद्धक्षेत्र
के नामसे प्रसिद्ध है। कलकलवाहिनी युगल नदीयोंसे वेष्टित यह क्षेत्र प्राकृतिक शोभाका
अनुपम स्थल है। पूज्य क्षुल्लक श्री गणेशप्रसादजी वर्णी महाराजने इस स्थान पर कई कई
महिनो तक एकान्त साधना की है। प्रान्तीय जनतामें जैनधर्म का वास्तविक ज्ञान प्रसारित हो
इस उदेश्यसे यहां पुज्य वर्णीजीद्वारा
श्री गुरुदत्त दिगंबर जैन पाठशाला स्थापित की गई थी
जो ३० वर्षसे अनवरत समाजमें शिक्षाप्रसारका कार्य कर रही है। लौकिक शिक्षाके प्रसार हेतु
क्षेत्रीय कमेटीने मलहरा में ‘जनता हाइस्कुल’ के नामसे एक माध्यमिकशाला भी स्थापित की
है जो थोडे ही समयमें राजमान्य हो जैनाजन जनतामें समानभावसे शिक्षाका प्रसार कर रही है
वक्तृश्रेष्ठः–
आपकी भाषामें ओज है, प्रवाह है, प्रभाव है, और अनुपम आकर्षण, वही कारण है कि
आपके साथ आपसे प्रभावित हजारों बन्धुओको गले गलाते हुए हमारा रोमरोम पुलकित हो
रहा है। हमारा यह सहधर्मी वात्सल्यभान उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता रहे इस भावनाके साथ हम
आपका एकबार पुनः अभिवादन करतें हैं।
द्रोणगिरि –हम है आपके विनीत
२१–४–५९ द्रोणगिरि प्रान्तीय जैन जनता