Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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समाचार
परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजे छे. जेठ सुद पूनम पछी पहेलुं प्रवचन श्रावण सुद
पूनमे थयुं हतुं. ए दिवसे वात्सल्यनो महान दिवस हतो तेथी मुहूर्त तरीके गुरुदेवे एक वखत प्रवचन
कर्युं हतुं (जे आ अंकमां आपवामां आव्युं छे.) गुरुदेवनुं प्रवचन शरू थवाना प्रसंगे सौने घणो ज
हर्ष हतो. चारे कोर आनंदनुं वातावरण हतुं. प्रवचन माटे गुरुदेव पाट उपर पधारतां ज हर्षभर्या जय
जय कारथी अने वाजिंत्रनादथी स्वाध्यायमंदिर गाजी ऊठयुं हतुं. त्यारबाद समयसारनी ४१३मी गाथा
उपर पू. गुरुदेवे धीर–गंभीर शैलीथी वैराग्यभर्युं प्रवचन कर्युं हतुं. प्रवचन बाद थोडीवार हर्षभरी
भक्ति तेमज प्रभावना थयेल.
त्यारबाद श्रावण वद १२थी सवारे ४७ शक्ति उपर अने बपोरे ऋषभजिन भक्ति उपर पू.
गुरुदेवना प्रवचनो थयां...गुरुदेवना सुमधुर–शांतरसपूर्ण प्रवचनो सांभळीने तरस्या जिज्ञासुओनां
हैयां तृप्त थया...सवार–बपोर–सांज आखो दिवस अध्यात्मना नाद गाजी ऊठया सोनगढनुं वातावरण
प्रसन्न–प्रफूल्ल ने हर्षमय बन्युं. सवारे प्रवचन पूरुं थतां उल्लासपूर्ण भक्तिद्वारा बेनश्री–बेने प्रमोद
व्यक्त कर्यो...ने बपोरे पू. गुरुदेवना मुखेथी भक्तिनुं प्रवचन सांभळ्‌या पछी तो जाणे भक्तिनां पूर
चडया...जिनमंदिरमां पू. बेनश्रीबेने रोम–रोम उल्लसी जाय ने घेर घेर आनंदमंगळ थाय एवी
अद्भुत भक्ति करावी.
आ प्रसंगे बहारगामथी प०० जेटला महेमानो गुरुदेवना प्रवचनोनो लाभ लेवा माटे आवेल;
भादरवा सुद ४थी दसलक्षणी पर्युषण पर्वनो प्रारंभ थयो ते दिवसे जिनमंदिरमां दसलक्षण मंडळमां
उत्तमक्षमाधर्मनुं पूजन थयुं...अने पू. गुरुदेवे बारस्सअनुप्रेक्षामांथी उत्तमक्षमादि दशधर्मो उपर
प्रवचनो शरू कर्या...ते दिवसे ज्ञानपूजन पण थयुं. दसलक्षण धर्म दरमियान पण पू. गुरुदेवना
प्रवचनो चालु रहेेशे.
हाल दसलक्षणीपर्वनो उत्सव आनंदपूर्वक ऊजवाई रह्यो छे. भादरवा सुद पांचमनी सवारे श्री
जिनेन्द्रभगवाननी रथयात्रा नीकळी हती. आ दिवसो दरमियान दक्षिण तीर्थयात्रा (बाहुबली
भगवान वगेरे) नी फिल्म पण बताववामां आवी हती, तेमां अनेक तीर्थोना साक्षात्सद्रश दर्शन
करतां सौने घणो हर्ष थतो हतो. भगवान बाहुबलीस्वामीनी मुद्रा अने कुंदकुंद प्रभुनी पवित्र भूमि तो
भक्तोना हृदयने फरी फरीने आकर्षती हती.
जिन भावना
हे जीव! जिनभावना विना, भीषण नरकगतिमां तेमज
तिर्यंचगतिमां तुं तीव्र दुःख पाम्यो...माटे हवे तुं जिनभावना
भाव, एटले के शुद्धआत्मतत्त्वनी भावना कर...के जेथी तारुं
संसारभ्रमण मटे.