कारतक : २४८७ : २१ :
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(दक्षिण–तीर्थयात्रा निमित्ते विचरतां विचरतां पू. गुरुदेव ज्यारे कोटा शहेर
पधार्या त्यारे पू. गुरुदेवने जे अभिनंदनपत्र अपायेल ते आ अंकमां प्रसिद्ध कर्युं छे. ते
उपरांत पू. बेनश्री–बेनने पण अभिनंदनपत्र अर्पण करवामां आव्युं हतुं; ते अभिनंदन–
समारोहनी खास महिलासभामां दोढ हजार जेटला बहेनो उपस्थित हता, अनेक विद्वान
बहेनोए भावभीना सुंदर भाषण करीने पू. बेनश्रीबेननुं बहुमान कर्युं हतुं. अभिनंदन
विधि बाद पू. बेनश्रीबेने जे सुंदर “अध्यात्म सन्देश” आपेल ते आत्मधर्म अंक १८७ मां
प्रसिद्ध थयेल छे. कोटाना दि. जैन महिला समाजे जे विद्वत्ताभर्युं अभिनंदनपत्र आपेल छे
ते प्रशसंनीय छे, ने आ नुतनवर्षना प्रारंभे ते अभिनंदनपत्र अहीं प्रगट करतां आनंद
थाय छे.)
य
पूज्या विदुषी माता श्री चंपाबहिन व शान्ताबहिन
के पुनित करकमलोंमें सादर समर्पित
अभिनन्दन – पत्र
विदुषी माताओ!
यह हमारा परम सौभाग्य है कि पृथुल–प्रतीक्षा के उपरांत अनमोल निधियों सी
आप महिला–रत्नों का हमें पुनीत समागम प्राप्त हुआ है। जीवन की अत्यंत प्रिय वस्तु
के संयोग के समान जीवन के ये स्वर्णिम–क्षण कितने अनमोल है! इस पावन अवसर
पर अन्य मुमुक्षु महिलाओं सहित हम हृदय से आपका अभिनन्दन करती हैं।
जीवन के उन क्षणों में जब अज्ञान और अविवेक से अनुशासित मानव भोग
और विलास के कंटकाकीर्ण पथ पर उन्मुक्त बढा चलता है, आपके अन्तर में अन्धकार
को चीरती हुई रवि–रश्मि के समान विवेक की निर्मल आभा प्रस्फुटि हुई और पूज्य
कान्ह गुरुदेव की शीतल छाया में आपने अन्तरतत्त्व का अनुसंधान आरंभ किया।
विराग की पावन प्रतिमाओं–सी आप! आज भी चरम–शांति के उसी एक लक्ष्य को
लिये पूज्य गुरुदेव के चरण–चिन्हों पर अविराम गतिशील हैं।