वर्ष अढारमुं : अंंक ४ थो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी महा : २४८७
निजआत्मानो आराधक परमात्मा थाय छे
(पद्मनंदी–एकत्वसप्तति)
जन्मरहित, एकरूप, परम–उत्कृष्ट, शांत अने सर्वे उपाधिथी रहित एवा
पोताना आत्माने आत्मावडे ज जाणीने, ते आत्मस्वरूपमां ज निश्चलपणे जे स्थिर रहे
छे ते ज पुरुष पोते अमृतमार्गमां स्थित छे– मोक्षमार्गमां स्थिर छे, ते ज मोक्षने पामे
छे, ते ज अर्हंत् (पूज्य) छे, ते ज जगतनो नाथ छे. ते ज प्रभु छे अने ते ज पोते
ईश्वर छे.
माटे भव्य जीवोए पोताना आत्माने जाणीने तेमां निश्चलपणे स्थिर रहेवानो
उद्यम करवो जोईए.
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