जहरसी जोग–जाति कहरसी करामाति, हहरसी हौस पुद्गल–छवि छारसी;
जालसौ जग–विलास भालसौ भुवनवास, काल सौ कुटुंबकाज लोकलाज लारसी;
सीठसौ सुजसु जानै वीठसौ वखत मानै, ऐसी जाकी रीति ताहि बंदत बनारसी.
वगेरे जोगने झेर समान, सिद्धि वगेरे ऐश्वर्यने अशाता समान, लौकिक उन्नति
अथवा जगतमां पूज्यता थवा आदिनी होंशने अनर्थ समान, घरवासने
बाणनी अणी समान, कुटुंबना कार्यने काळ (मृत्यु) समान, लोकलाजने अथवा
लोकमां लाज वधारवानी ईच्छाने मुखनी लाळ समान, सुयश अथवा कीर्तिनी
ईच्छाने नाकना मेल समान अने पुण्य भाग्योदयने जे विष्ठा समान जाणे छे
(अने परमार्थे पोताना शुद्धात्मतत्त्वने उत्तम, मंगळ अने शरणरूप नित्य माने
छे.) तेने कविवर श्री बनारसीदासजी नमस्कार करे छे.