Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक ११ मो संपादक : भानुभाई मुळजीभाई लाखाणी भादरवो : २४८७
रत्नोनी खाण
जेम रत्नोनी खाणमांथी रत्नो नीकळे, तेम
चैतन्यरत्ननी ध्रुवखाण आत्मा छे, तेमांथी सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप रत्नो नीकळे छे पण, जेम लोढानी
खाणमांथी हीरा न नीकळे, तेम विकारनी खाण खोदे तो
तेमांथी सम्यग्दर्शनादि रत्नो न नीकळे माटे आचार्यदेव कहे
छे के हे जीव? तारा अंतर–स्वभावमां ऊंडो ऊतरीने
चैतन्यरत्नोनी ध्रुव खाणमांथी सम्यग्दर्शनादि रत्नो काढ
(प्रवचनमांथी)
[२१प]