ज्ञान–चारित्ररूप रत्नो नीकळे छे पण, जेम लोढानी
तेमांथी सम्यग्दर्शनादि रत्नो न नीकळे माटे आचार्यदेव कहे
छे के हे जीव? तारा अंतर–स्वभावमां ऊंडो ऊतरीने
Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).
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