Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page  


PDF/HTML Page 23 of 23

background image
ATMADHARMA Regd. No. B 5669
---------------------------------------------------------------------------------------
आ....रा....ध....ना....
* रत्नत्रयनी आराधनामां स्वद्रव्यनुं ज जतन छे, परद्रव्यनुं सेवन नथी. आवा
रत्नत्रयने जे जीव आराधे छे ते आराधक छे अने एवा आराधक जीव रत्नत्रयनी आराधना
वडे केवळज्ञान पामे छे. ए वात जिनमार्गमां प्रसिद्ध छे. रत्नत्रयनी आराधना परना
परिहारपूर्वक आत्माना ध्यानथी थाय छे.
* सम्यग्दर्शनथी जे शुद्ध छे ते ज शुद्ध छे.
सम्यग्दर्शननो आराधकजीव अल्पकाळे सिद्धि पामे छे.
सम्यग्दर्शन वगरनो जीव ईष्टसिद्धिने पामतो नथी.
आ रीते मोक्षनी सिद्धि माटे सम्यग्दर्शननी आराधना प्रधान छे.
* जिनवर भगवाने गणधरादि शिष्यजनोने उपदेशमां एम कह्युं छे के हे भव्यजीवो!
धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन वगर कोई धर्म होतो नथी. जगतमां प्रसिद्ध छे के जे
वस्तुनी प्राप्ति करवी होय तेनी प्रीति–रुचि–ओळखाण करे छे, तेम मोक्षनी प्राप्ति माटे पहेलां
तेनी प्रतीति–रुचि–ओळखाण करवी जोईए. मोक्ष कहो के शुद्धआत्मा कहो, तेनी प्रतीति ते
सम्यग्दर्शन छे.
* सम्यग्दर्शन थया पहेलां शुं करवुं?
सम्यग्दर्शन पहेलां तेने माटेनो प्रयत्न करवो. श्रावके सम्यग्दर्शननुं ध्यान करवुं, तेना
ध्यानथी दुष्टकर्मोनो क्षय थाय छे; अने जेने सम्यग्दर्शन थयुं न होय तेने सम्यक्त्वनुं स्वरूप
ओळखीने तेना ध्यानथी सम्यग्दर्शन थाय छे. सर्वे जीवोने माटे सम्यग्दर्शन ते सारभूत छे. सर्व
उपदेशनो ते सार छे. सत्नी शरूआत, धर्मनी शरूआत के मोक्षमार्गनी शरूआत सम्यग्दर्शनथी
थाय छे. माटे पहेलां सम्यग्दर्शननी आराधना कर्तव्य छे.
* सम्यग्दर्शनना प्रयत्न माटे अंतरमां रात–दिन एक ज घोलन अने मंथन करी करीने
अंदर स्वरूपनो निर्णय करे; पोतानुं कार्य साधवा माटे परम उत्साहथी गाढ रंगथी दिनरात ते
माटे मंथन करीने निर्णय करे. निर्णयनुं जोर द्रष्टिने अंतर्मुख करे छे.
* हे जीव! सम्यग्दर्शनपूर्वक चारित्रनी आराधना पण थई शके तो तो ते उत्तम ज छे, ते
तो साक्षात् मोक्षनुं कारण छे, अने जो एवुं चारित्र आराधवानी तारी शक्ति अत्यारे न होय
तो, यथार्थ मार्गनी श्रद्धारूप सम्यग्दर्शननी आराधना तो तुं अवश्य करजे. सम्यग्दर्शननी
आराधनाथी पण मोक्षमार्गनुं आराधन टकी रहेशे. सम्यग्दर्शननो आराधक अल्पकाळमां चारित्र
प्रगट करी, केवळज्ञान अने मोक्ष पामशे. सम्यग्दर्शननी आराधनाथी जे भ्रष्ट छे ते तो मोक्षना
मार्गथी ज भ्रष्ट छे माटे हे जीव! तुं सर्व उद्यमथी सम्यग्दर्शननी आराधना जरूर करजे.
–––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती मुद्रक–प्रकाशक: हरिलाल देवचंद शेठ आनंद प्रिन्टींग प्रेस–भावनगर.