ATMADHARMA Regd. No. G. 82
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केवळज्ञानीनी वाणी
समजवाने पात्र कोण!
पात्रे प्रभुता प्रगटे! तारी मोटाईनां गाणां गवाय छे. अनंत काळमां
अनंतवार साचा देव–शास्त्र–गुरु अने नवतत्त्वना ज्ञानरूपी व्यवहारना
आंगणे आव्यो पण रागथी पार अंतरंगमां कारण परमात्मा धु्रव स्वभाव
छे, तेमां प्रवेश्या विना, आंगणेथी पाछो गयो.
चित्त शुद्धिना आंगणे आववुं पडे–नवतत्त्वना भेद जाणवा जोईए
पण तेने पकडी राखीने, अंदर निर्विकल्प विज्ञानघनना अनुभवमां न जवाय.
समयसार शास्त्र परम अद्भुत छे “एक पण भव न जोईए” एवी
अपूर्व भावना वडे पात्र थईने सत्समागमे जे समजे ते न्याल थई जाय
मूंजवणनुं नामपण न रहे. टीकामां आचार्यदेवे अलौकिक काम कर्युं छे.
अमरत्वनी प्राप्ति थाय एवा अमृत रेडयां छे. अंतरनी धगशथी बराबर
सत्यने सांभळे अने जिज्ञासा सहित मध्यस्थ रहीने समजवा मागे, तो
अंतरमां यथार्थतानो अनुभव थाय, नित्य स्वभावमांथी यथार्थता ऊगे अने
कृतकृत्य थई जाय. एवी सरस वात आचार्यदेवे कही छे.
जेओ सत्य समजवानी जिज्ञासावाळा छे, तेम ज पात्र छे तेमने
आचार्यदेव आ बधुं समजावे छे. अने ते समजी शके तेवुं ज कहेवाय छे. श्री
समयसार गा–१ नी टीकामां श्री अमृतचंद्र आचार्यदेवे कह्युं के “हुं अने तमे
बधा सिद्ध परमात्मा समान छीए–” स्व–परना आत्मामां पूर्णता (सिद्धपद)
स्थाप्या विना सत्य समजाय नहि, पोतानी पूर्ण प्रभुतानो महिमा आवे नहि.
आचार्यदेव कहे छे के तुं पण परमार्थे सर्वज्ञ परमात्मा, आनंदमूर्ति
सिद्धभगवान जेवो ज छो, जेटला परिपूर्ण गुणो सिद्धपरमात्मामां छे तेटला
बधा ज गुणो तारामां पण छे. जे सिद्ध भगवानमां नथी. ते तारामां नथी
आवो पूर्णस्वभाव वर्तमानमां पण अखंडपणे वर्ते छे, तेनो उत्कृष्टरसे महिमा
लावी पूर्णस्वरूपनो विश्वास करनारने भवनी शंका न रहे, पण जे जीवो
पोताना पूर्णस्वरूपनो विश्वास न करे तेने भवनी शंका न टळे तेथी तेओ
भव रहित एवा केवळज्ञानी अने तेना उपदेशने समजी शके नहिं, पण हुं
सर्वज्ञ स्वभावी छुं, स्वभावमां भव नथी, नित्य स्वभावना निश्चय अने
आश्रयरूप वर्तमान साधक भावमां पण भव तथा भवनुं कारण विभाव नथी
एम नित्य स्वभावथी निःशंक निर्भय थयेला छे तेओ ज केवळज्ञानी
जिनेश्वरदेवनी वाणीने समजी शके. अने ए रीते समजवा मागे ते पण समजी
शके
(पू० गुरुदेव)
दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती मुद्रक प्रकाशक हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टीग प्रेस–भावनगर