Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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चौद कुमारी बेनो श्री जिनमंदिरमां पूजा करी रही छे. मूळनायक श्री सीमंधर भगवाननी अष्ट
द्रव्य वडे पूजा करतां नीचे मुजब भावना भावे छे.
(१) जल पूजा:– हे निर्मळ भगवान! आप जन्म–जरा–मृत्युना मेलनो नाश करी निर्मळ थया
छो. जेवी रीते जल मळनो नाश करे छे, तेवी रीते आपनी जल पूजा करीने मारा आत्मानी पर्यायमां
रहेलो विकाररूपी मळ नाश पामो अने जन्म जरा अने मृत्यु नाश पामो–एम भावना करुं छुं.
(२) चंदन पूजा:– हे शांतमूर्ति भगवान! आप परम शांत दशाने पाम्या छो, भव ताप नाश
करी, जेवी रीते लोकमां चंदन दाहना रोग उपर शीतलता करे छे, तेम भव आताप रूपी रोग
मटाडवा, अने साची शांति प्रगट करवा चंदन वडे आपनी पूजा करुं छुं.
(३) अक्षत पूजा:– हे अक्षय निधि भगवान! आप अक्षय पदने पाम्या छो. जेम चोखानो
दाणो अखंडित होय छे, तेम अखंडित अक्षय (मोक्ष) पदनी प्राप्ति अर्थे अक्षतथी आपनी पूजा करुं
छुं.
(४) पुष्प पूजा:– हे वीतरागी जिनेन्द्रदेव! कामबाणनो नाश करीने आप वीतराग थया छो,
तेथी मारामां रहेला काम विकारने नष्ट करवा माटे पुष्पथी आपनी पूजा करुं छुं.
(प) नैवेद्यपूजा:– हे अनाहारी परमात्मा! आप अनाहारी पद पाम्या छो. जीवननुं स्वरूप
अनाहारी छे, पण अनादिथी क्षुधारूपी रोग लागु पड्यो छे, ते नाश करवा माटे ने अनाहारी पदनी
प्राप्ति अर्थे नैवेद्यथी आपनी पूजा करुं छुं.
(६) दीप पूजा:– हे केवळज्ञानी परमात्मा!–आपनुं केवळज्ञान मोह अन्धकार रहित छे. हुं पण
केवळज्ञाननी भावना अर्थे अने मोह अंधकारनो नाश करवा माटे दीपथी पूजा करुं छुं.
(७) धुप पूजा:– हे परमात्मा! जेम आपे ध्यान अग्नि वडे कर्मोने भस्म कर्यां छे, तेम हुं ध्यान
अग्नि वडे भावकर्म अने निमित्तरूपे अष्ट द्रव्यकर्मरूपी मेल नाश करवा माटे धूप वडे आपनी पूजा करुं
छुं.
(८) फल पूजा:– हे मोक्ष स्वरूप परमात्मा! आप रत्नत्रयना फलरूपे मोक्षने पाम्या छो. परम
पवित्र मोक्ष फलनी प्राप्ति अर्थे फळथी आपनी पूजा करुं छुं.
अर्ध पूजा–हे सीमंधरादि जिनेन्द्र भगवंतो! आपना चरण कमलनी सेवा मन–वचन–कायाथी
करुं छुं. हे करुणा निधि! भवनां दुःख मटाडवा आपना चरण पूजुं छुं. अमूल्य पद (मोक्ष पद) प्राप्त
करवा माटे अर्धथी आपनी पूजा करुं छुं.
त्यारपछी उत्तम क्षमा धर्मनी अष्ट प्रकारी पूजा करी हती. पर पदार्थनी तथा पुण्यनी रुचि
छोडी, स्वभावनी रुचि करवाथी अनंतानुबंधीनो क्रोध नाश पामे छे, ने सम्यग्दर्शन रूप जघन्य
क्षमाधर्मनी शरूआत थाय छे. ने अंतर स्वभावमां विशेष चारित्र दशा थतां, प्रतिकूळ संयोगोमां
अथवा कोई प्रत्ये वैरवृत्ति अथवा क्रोध उत्पन्न थवा न देवो, ने क्षमा सागर भगवान आत्मामां
स्थिरता करवी, ते उत्तम क्षमा छे. आवा भानवाळाने क्षमानो शुभराग आवे, ते व्यवहार क्षमा छे.
आवी उत्तम क्षमा आभूषणमां सार रूप छे. ते पहेरवाथी भव्य जीव भवसागरथी पार ऊतरे छे.
एम क्षमानुं स्वरूप समजीने, क्षमा धर्मनी पूजा करी हती, ने पोतामां ए धर्म प्रगटो एवी भावना
भावी हती.