Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARAM Reg. No. G 82
प्रभुता भूली पामर थयो, निज हत्यामां राची रह्यो.
श्री गुणभद्राचार्य आत्मानुं शासनमां कहे छे के,
हे भोळा प्राणी! तें आ पर्याय पहेलां सर्व कार्य “अजाकृपाणोयवत् कर्यां. कोई मनुष्य
बकरीने मारवा माटे छरी ईच्छतो हतो–पण बकरी एज पोतानी खरीथी पोताना नीचे दटायेली छरी
काढी आपी, जेथी तेज छरीथी ते मूर्ख बकरीनुं मरण थयुं, तेम जे कार्योथी तारो घात थाय–बुरुं थाय
तेज कार्य तें कर्युं, खरेखर तुं हेय उपादेयना विवेकथी रहित मूर्ख छे.
घात शुं अने जीवन शुं तेना भान विना जीवो पोतानी ज मूर्खता वडे पोतानो ज घात
करे छे. जेम पोते ज पोताना नीचे दटायेली छरी काढीने धरवी ए जेम बकराने माटे स्वघातक
कार्य छे, तेम आ मनुष्य पर्यायमां तने जे कंई विषयादि सेवनथी सुखजेवुं भासे छे, अने तेथी तुं
एम मानी रह्यो छे के आ सुखअवस्था मारी आम सदाय बनी रहेशे, एम समजी निश्चिंत थई
रह्यो छे, पण ए भरोसे निश्चिंत रहेवुं तने योग्य नथी. तारो ए विचार तने ज घातरूप छे, तेनुं
तने लेश भान छे? ए विषयादि सेवनमां सुख नथी ज, सुखाभास मात्र छे अने ते पण क्षणिक
छे एम जाणी तेनी लुब्धतामां अज्ञान वडे आ अमूल्य मानव जीवननो हीन उपयोग न कर!
एथी तारो ज घात थाय छे ते विचार! पोताना उपयोगने पोते ज मलिन करी पोताना ज शुद्ध
ज्ञान, दर्शन, सुखादि भाव–प्राणनो नाश करी आनंद माणवो ए पेला बकरा जेवुं स्वघातक कार्य
नहीं तो बीजुं शुं? पर द्रव्यथी पोतानुं भलुं बूरूं थवा मानीने, परने ईष्टअनिष्टमानीने, पोताना
ज्ञान दर्शनमय उपयोगने बगाडी रह्यो छे. आवां निरंतर भावमरणने जीवन माने, तेमां
आनंदमाने ए घेलछा नहिं तो बीजुं शुं छे?
जैन धर्मनी विशेषता.
विदेशी अनेक धर्मोनो अभ्यास करीने, भारतीय दर्शनोना अध्ययन–अभ्यास करवावाळा
जर्मन विद्वाने जैन दर्शनना प्रकान्ड विद्वान पंडितजी फुलचंदजी सिद्धांतशास्त्री (वाराणसी) पासे जईने
प्रश्न पूछ्यो, शास्त्रीजी! जैन दर्शनमां एवी शुं विशेषता छे के जेथी आप तेनुं अलग अस्तित्व राखवा
मागो छो? अहिंसा आदि तो अनेक धर्मोमां होय छे, माटे आप जैनोए कोई विशाळकाय धर्ममां
भळी जवुं जोईए अथवा जैनधर्मनी एवी विशेषता बताववी जोईए के जे अन्य दर्शनोमां न मळी
शके!
शास्त्रीजीए कह्युं के “महोदय! अहिंसा आदि तो धर्मनुं सामान्य शरीर छे, पण जैन धर्मनो
आत्मा (जैनधर्मनुं स्वरूप) तो आ बे विशेषताओमां छे– (१) स्वावलंबन अने (२) व्यकित
स्वातंत्र्य, अर्थात् भेद विज्ञानमय तत्त्वज्ञान द्वारा पोताना ज बळ उपर दरेक आत्मा परमात्मा बनी
शके छे.” आम जर्मन विद्वाने जैनधर्मनी विशेषता जाणीने बहु प्रसन्नता बतावी.
(सन्मति – संदेशमांथी)
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रीन्टींग प्रेस–भावनगर.