Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष २० अंक ३जो] तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी [पोष २४८९
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जे दीन तुम वीवेक बीन खोये
मोह–वारुणी पी अनादि से पर–पदमें चिर सोये;
सुख करंड चित्पिंड आप–पद, गुण अनंत नहीं जोये,
जे दिन तुम विवेक बिन खोये.
होय बहिर्मुख ठानि राग रूप कर्म–बीज बहु बोये;
तसु फल सुख–दुःख सामग्री लखि, चितमें हरखे रोवे.
जे दिन तुम विवेक बिन खोये.
धवल ध्यान शुचि सलिल पुरसे आस्रवमल नहीं धोये;
परद्रव्यनिकी चाह न रोकी. विविक परिग्रह ढोये.
जे दिन तुम विवेक बिन खोये.
अब निजमें निज जान नियत यहां निज परिणाम समोये;
यह शिवमारग समरस सागर. भागचंद हित तोये,
जे दिन तुम विवेक बिन खोये.
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१ शुभाशुभ रागादि करवा जेवा छे एम कर्तृत्व वडे. २ देखीने. ३ पाणी. ४
मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, क्रोधादि कषाय अने योगरूपी मलीनभाव. प मुर्छा–ममत्व,
परद्रव्य–परभाव पुण्यपापने ग्रहण करवानो बोजो मूढ जीव उपाडतो रहे छे. ६ निश्चय
(२३१)