उपरथी आ चित्र बनाव्युं छे.....तमनेय आ वहाणमां बेसवानुं मन थइ जाय छे ने!–तो विशेष जाणकारी
सोनगढमां रह्या हता, ने सोनगढ रहेवानी ज भावना होवा छतां धंधादारी कारणोसर
मुंबई जवुं पडयुं हतुं. छेल्ले मात्र चार दिवस तेमने ताव आव्यो, ने शरीर नबळुं थइ
जतां वात करतां करतां तेमनुं हृदय बेसी गयुं. तेमना पुत्र अनिलभाई तेमने
समवसरणस्तुति संभळावता; स्वर्गवासनी थोडी ज क्षण पहेलां तेमने (१०–४०
मिनिटे) घडियाळनो टाइम पूछयो, ने पछी भगवानना तथा गुरुदेवना फोटानी सामे
हाथ जोडतां बे मिनिटमां तेेओ देह छोडीने चाल्या गया. तेओ अखंड सत्समागम पामे
ने आत्महित साधे....ए ज भावना.
अने अवारनवार सोनगढ आवीने तेओ लाभ लेता हता. मांदगी दरमियान पण
तेओ स्वाध्याय–वांचन सांभळता, टेप–रेकोर्डिग मशीनद्वारा गुरुदेवना प्रवचनो
सांभळता; अंतिम दिवस सुधी स्वाध्याय सांभळी हती, ने छेल्ले गुरुदेवना तथा
श्रीमद्राजचंद्रना फोटाना दर्शन कर्या हता. तत्त्वज्ञाननी जिज्ञासामां आगळ वधीने तेेओ
आत्महित साधे ए ज भावना.