श्री कुंदकुंदेव स्तवन
(गागर उपर बेठो लीलो हंस रे)
क्यो कुंदकुंद देव! कि््यो तमारो देश रे, आ कि््यां तमारा बेसणां रे;
भरत क्षेत्र छे अमारो देश रे, आ सीमंधर सभामां बेसणां रे;
भरत क्षेत्र छे अमारो देश रे, आ पोन्नूर गिरिमां बेसणां रे;
आभ स्व–स्थाने छे अमारो वास रे, आ अनंत गुणोमां बेसणां रे;
क््यो कुंदकुंद देव केम करी गया विदेह रे, आ केवा प्रभुने निहाळीया रे;
भक्ति भावे गया अमे विदेह रे, आ जिनेंद्र अद्भुत निहाळीया रे;
पोन्नुर गिरिथी गया प्रभु विदेह रे, त्यां प्रभुजीना दर्शन पामिया रे;
सीमंधर प्रभुना दिव्य ध्वनिना छूट्या नाद रे, कुंदकुंदे झील्या भावथी रे;
अद्भुत ध्वनि सुणी थया लय लीन रे, आ वीतराग भावने घुंटीया रे;
वळी फरी आव्या भरतक्षेत्र मोझार रे, आ समय प्राभृतने गुंथीया रे;
आ भरतक्षेत्रे श्रुतकेवळी कुंदकुंद रे, महामुनियोना शिरोमणि रे;
कुंदकुंद प्रभुना केडायत गुरु कहान रे, आ जगत उद्धारक प्रभु जागीया रे;
सुवर्णपुरी दिसे महाविदेह समान रे, सीमंधर प्रभुजी पधारीया रे;
तीर्थधाममां वर्ते जय जयकार रे, आ मंगळ कार्यो दिनदिन थाय रे;
जयवंत वर्ते देव गुरुजी शास्त्र रे, आ शासन जयवंत वर्ती रह्युं रे;
श्री नागरदास चकुभाई गढडावाळा (ब्र. गुलाबचंदभाईना बनेवी) मुंबईमां ता. ९–
१–६४ना रोज स्वर्गवास पामी गया छे. २० वर्षथी गुरुदेवनो तेमने परिचय हतो. शिखरयात्रा
वखते पण तेओ साथे ज हता. सोनगढमां सत्समागम माटे घणो वखत आवता, मुंबई मुमुक्षु
मंडळमां पण वांचननो लाभ तेओ लेता हता. तेओ आत्महित साधे ए ज भावना.
श्री नरशीदास डुंगरशी वढवाणवाळा के जेमणे लगभग वीस वर्षथी श्री जैन अतिथि
सेवा समितिना कोठारी तरीके फरज बजावी हती. तेओ सोनगढमां ता. १५–१–६४ना रोज
हेमरेजनुं दर्द थतां स्वर्गवास पामी गया छे.