मन अने शरीर, जाणे के अमृतथी शीघ्र सींचाई गयां होय एम भासे छे.
’ पोताना आत्मानुं लक्ष ने सर्वज्ञना गुणोनी ओळखाणपूर्वक कहे छे के हे
नाथ! सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानरूपी नेत्रोवडे आपने देखवाथी मारी
श्रद्धा–ज्ञान पर्याय सफळ थई गई. बहारमां जिनवरदेवनी प्रतिमाना
दर्शनथी बहारनी आंखो सफळ थई अने अंतरंगमां जिनवरस्वभावी
आत्माने देखतां ज अंतरना श्रद्धा–ज्ञानरूपी चक्षु सफळ थयां. हे जिन!
आपने जोतां हुं मने सफळ मानुं छुं. विकल्प थाय तेने हुं जोतो ज नथी.
तारा दर्शनथी मारी आंखो सफळ थई, अवतार सफळ थयो अने
अनंतकाळे नहि थयेलो एवो अपूर्व आत्मभाव प्रगट थयो. तारी
ओळखाणथी मारुं जीवन सफळ थयुं–धन्य थयुं. हे नाथ! तारा दर्शनथी
आत्मा तो आनंदमय थयो–अमृतथी सींचाई गयो, परंतु शरीर अने मन
पण अमृतथी सींचाई गयां छे. जेम घणां लांबा काळे पोतानां वहाला
पुत्रने जोतां ज साची माताना हृदयमां हर्ष उभराई जाय, पुत्रप्रेमथी
छाती फूलाई जाय अने वस्त्रनी कस तूटी जाय तथा स्तनमांथी दूधनी
धार छूटे... तेम हे चैतन्य भगवान! अनंतकाळे तारा दर्शन मळ्यां, तारा
दर्शन वडे स्वभाव समजवाथी मारो आत्मा उल्लसित थयो, मारा द्रष्टिनां
बंधन तूटी गयां, अने अमृतनी धारा छूटी, हुं कृतकृत्य थयो. अहा! एम
न समजशो के आचार्यदेवे आ वाणीनो विलास कर्यो छे, आ तो यथार्थ
ओळखाणना भावनो ज्ञानीनो उल्लास छे. असंख्य आत्मप्रदेश आनंदथी
प्रफुल्लित थयां छे. हे नाथ! तारा दर्शन करतां मारो आत्मा तो
अमृतरसथी सींचाई गयो परंतु आत्मानी पाडोशमां रहेनारां आ शरीर,
मन अने वाणीने पण तेनी छांट लागी तेथी ते पण अमृतरसथी भींजाई
गयां! आ रीते पूर्ण परमात्मपदना साधक धर्मात्माने पूर्णपदने पामेला
एवा भगवान प्रत्ये उल्लास आवे छे. तेमना प्रतिबिंबनुं दर्शन थतां
पण जाणे के साक्षात् भगवान ज भेटया होय एवो आह्लाद आवे छे.