
छे. तेथी ते कल्याणक छे. ते आत्मा पोते आत्मभान करीने उन्नतिक्रममां चडता
चडता पूर्णानंददशाने आ भवमां पामवानो छे. आत्मानुं भान करीने वीरता
प्रगट करी, पण हजी पूर्णता थइ न हती त्यारे धर्मनी पूर्णता प्राप्त करवानी
भावनामां वच्चे विकल्पथी तीर्थंकरनामकर्म बंधायुं. चैतन्यना
अतीन्द्रियस्वभावनी किंमत करीने अंतरमां तेनुं वेदन करतां करतां आ अवतार
थयो छे. पहेलां स्वभावनी किंमत भूलीने अज्ञानथी संयोगनी किंमत करतो,
पछी चिदानंदस्वभावनुं भान करीने तेनी किंमत महिमा आवतां भगवाननो
आत्मा तेना वेदन तरफ वळ्यो....अहो, आ भवमां भगवाने आत्मानी साधना
पूरी करी. इन्द्रो भगवानने आजे मेरुपर्वत उपर जन्माभिषेक करवा लई गया
हता. चैतन्यवज्रमां जेम विभाव न प्रवेशे, तेम भगवाननुं शरीर पण वज्रकाय
हतुं. मोटा मोटा योजनना घडा भरी भरीने पाणी मस्तक उपर इन्द्रो रेडे–छतां
भगवानने जराय आंच नथी आवती. अंतरमां चिदानंद तत्त्वने देहथी पार ने
रागथी पार देख्युं छे,–एने जोतां इन्द्र ने इन्द्राणी पण भक्तिथी नाची ऊठे छे.
अहा, अनादिना संसारनो अंत करीने भगवान हवे आ भवमां सादिअनंत
एवी सिद्धदशाने साधशे–राग अने स्वभावनी एकतारूप बेडीना बंधन तो अमे
पण तोडी नाख्या छे–एवा भानसहित जेम माता पासे के पिता पासे बाळक
थनगन नाचे, तेम भगवान पासे इन्द्रो नाची ऊठे छे. हजी तो भगवान पण
चोथा गुणस्थाने छे, ने इन्द्र पण चोथा गुणस्थाने छे छतां ते इन्द्र भगवान
पासे भक्तिथी नाची ऊठे छे के अहा! आ भरतक्षेत्रनी धन्य पळ छे; वीरता
प्रगट करीने पोते तो पूर्ण परमात्मा थशे, ने जगतना घणा जीवोने पण भवथी
तरवानुं निमित्त बनशे. धन्य छे भगवाननो अवतार! एना जन्मनी धन्य घडी,
धन्य पळ ने धन्य दिवस छे, भगवाने अमृतना सागरने ऊछाळीने मुनिदशा
अने केवळज्ञान प्रगट कर्युं, पछी पावापुरीथी मोक्षधाम पाम्या.
आपणे पण आजे परिवर्तननो दिवस छे. २६ वर्ष पहेलां अहीं परिवर्तन
“प्रवचन” कहेवाय छे. ते प्रवचननो सार शुं छे. ते कुंदकुंदआचार्यदेवे आ
प्रवचनसारमां वर्णव्युं छे.