Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of magazine: http://samyakdarshan.org/Dceb
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/GJmA1d

PDF/HTML Page 20 of 55

background image
: जेठ : २४९० आत्मधर्म : ७ :
मुंबई केन्द्र उपरथी गुजराती तथा मराठीमां प्रसारित करवामां आव्यो हतो. जन्म–
कल्याणकना भव्य जुलूस वगेरेनी थोडीक फिल्म सरकारी खाता तरफथी समाचारना
न्युझरील तरीके उतारवामां आवी हती. मुंबई जेवा शहेरमां जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो
आवो पंचकल्याणक महोत्सव उजववा माटे मुंबईनगरीना मुमुक्षुओने धन्यवाद!
उत्सवबाद थोडा दिवस मुंबईना केटलांक पराओमां तेमज वापी–अंकलेश्वर ने
अमदावाद थईने पू. गुरुदेव वैशाख वद आठमना रोज सोनगढ पधार्या छे. गुरुदेव
सुखशांतिमां बिराजे छे. सवारना प्रवचनमां पंचास्तिकाय अने बपोरे समयसार
वंचाय छे; तेमज सोनगढना बधा कार्यक्रमो राबेतामुजब चाली रह्या छे.
संतो पीरसे छे: परमात्मानी प्रसादी
भाई, परमात्माए पीरसेलुं आ तत्त्व तने संतो प्रसादीरूपे
आपे छे. संतो आखा लोकने आमंत्रण आपे छे के अरे जगतना
बधाय जीवो! तमे आवा परम आनंदमय आत्मतत्त्वने पामो; आ
चैतन्यना शांतरसमां मग्न थाओ. आ परमात्मानी प्रसादी छे तेना
स्वादने अनुभवो. चैतन्यने भूलीने जगतने राजी करवामां जीव
रोकायो.–तेमां कांई कल्याण नथी; माटे अरे भगवान! तुं पोते
अंतरमां वळीने स्वानुभवथी राजी थाने! परमात्मानी आ प्रसादी
संतो तने आपे छे माटे तुं राजी था–आनंदित था. तुं राजी थयो तो
बधाय राजी ज छे. बीजा राजी थाय के न थाय. ते तेनामां रह्या. तुं
तारा आत्माने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञानथी रीझव. तारो आत्मा रीझीने राजी
थयो–आनंदित थयो त्यां जगत साथे तारे शुं संबंध छे? दरेक जीव
स्वतंत्र छे. माटे बीजाने रीझाववा करतां तुं तारा आत्माने रीझव.
त्रण लोकनो नाथ ज्यां रीझयो त्यां ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने
परम आनंदनो दातार छे. अरे जीवो! एक वार तो आवो अनुभव
करीने आत्माने रीझवो.
(समयसार गा. ३८ ना प्रवचनमांथी)