Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी
वर्ष २१ : अंक ११ : वीर सं. २४९० : भादरवो
श्रा व क नुं जी व न
भगवान आदिनाथ मुनिराज चैतन्यमस्तीमां झूलता
झूलता हस्तिनापुर पधार्या. एमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने
जातिस्मरण जाग्युं ने रोमरोम भक्तिथी उल्लसी गया...अहा.
मोक्षनुं कल्पवृक्ष मारा आंगणे फळ्‌युं... साक्षात् मोक्षमार्ग मारा
आंगणे आव्यो...एम हर्ष–भक्तिथी शेरडीना रसनुं आहारदान
कर्युं. आ चोवीसीमां मुनिराजने आहारदाननो ए पहेलो प्रसंग
बन्यो. एमां आहार लेनार अने देनार बंने चरमशरीरी हता.
आ रीते आहारदान, जिन–पूजा वगेरेनो शुभभाव ए
श्रावकनी भूमिकामां होय ज छे. एटले तेने श्रावकनो धर्म कह्यो
छे. आथी एम न समजी लेवुं के ए शुभराग ज मोक्षनुं कारण
थई जाय छे. मोक्षनुं कारण तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे.
अने ते ज खरेखर धर्म छे. गृहस्थश्रावकनेय ते धर्मनी उपासना
अंशे होय छे. मोक्ष–मार्गनुं प्रधान अंग सम्यग्दर्शन छे अने
तेनी आराधना गृहस्थनेय होई शके छे. सम्यग्दर्शनना उपासक
गृहस्थने पण धन्य अने कृतार्थ कह्यो छे. एवा धर्मी गृहस्थनुं
जीवन केवुं होय, तेना शुभभावो केवा होय? तेने देव–गुरु–
शास्त्रनी उपासना केवी होय–तेनुं वर्णन ‘उपासक–संस्कार’
नामना अधिकारमां पद्मनंदीस्वामीए कर्युं छे.
(ए अधिकार उपर बे वखत गुरुदेवना प्रवचनो थया छे,
जे हवे पछी गुजराती तेमज हिंदीमां प्रगट थशे.)
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