Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म रजीस्टर नं. जी १८२
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जीवननां मूल्य
अनेक वर्षोना घणा परिश्रमपूर्वक मेळवेली लाखो–करोडोनी संपदा पण, ज्यारे
जीवन–मरणनो प्रसंग आवे त्यारे क्षणमात्रमां जीव ते बधी संपदा छोडे छे लाखो–
करोडोनी ए बधी संपदा आपीने पण ते पोतानुं जीवन बचाववा मांगे छे, क्षणना जीवन
खातर वर्षोथी भेगी करेली बधी संपदा क्षणभरमां न्योछावर करी दे छे. आ उपरथी
फलित थाय छे के लाखो करोडोनी संपदा करतांय जीवननी एक क्षण वधु किंमती छे. लाखो
करोडोनी संपदा आपतांय जीवननी एक क्षण मळी शकती नथी. तेथी जीवननी एकेक
क्षणने जे नकामी गुमावे छे ते लाखो–करोडोनी संपदा करतांय वधु किंमती वस्तुने वेडफी
रह्यो छे....जीवननां खरा मूल्यांकन तो धर्मसाधना वडे ज थई शके छे. एवी धर्मसाधना
वगर आ मोंघेरा जीवनने जे निष्फळ वेडफी रह्यो छे...तेनी मूर्खतानी शी वात!
समयसार कलश–टीका
जेनी राह जोवाती हती ते पुस्तक ‘समयसार कलश–टीका’ आधुनिक
हिन्दीभाषामां प्रगट थई गयुं छे. ग्रंथाधिराज समयसारनी जे सर्वोत्तम टीका द्वारा
अमृतचंद्रसूरिए रहस्यो खोल्यां छे ते टीकामां अध्यात्मरसझरता काव्यरूप २७८ श्लोक छे,
तेने ‘
कलश’ कहेवाय छे. समयसारना आ २७८ कलशना अर्थो खास अध्यात्मशैलीथी पं.
श्री राजमल्लजीए प्राचीन ढूंढारी–हिन्दी भाषामां लगभग ४०० वर्ष पहेलां लख्या छे. ते
मूळ भाषामां लगभग ३४ वर्ष पहेलां (वीर सं. २४प७ मां) प्रगट थयेल. त्यारबाद आ
तेनुं आधुनिक हिन्दी संस्करण प्रगट थयुं छे. तेनी किंमत २–०० (बे रूपीआ) छे. हाल पू.
गुरुदेवना प्रवचनमां सवारे परमात्मप्रकाश वंचाय छे ने बपोरे समयसारनो अंतिम भाग
(४७ शक्तिओ वगेरे) वंचाय छे; समयसार लगभग आ मासमां (१४मी वखत) पूरुं
थशे, ने त्यारपछी ‘समयसार–कलश–टीका’ वंचाशे. पं. श्री बनारसीदासजी वगेरेए पण
आ कलशटीका वांचेली ने तेनी अध्यात्मशैलीथी तेमने प्रमोद आवेलो; एना आधारे तेमणे
‘समयसारनाटक’ लखेल छे. पं. श्री राजमल्लजी पांडेए आ कलशटीका उपरांत बीजा पण
ग्रंथो लखेला छे. जेमां ‘लाटीसंहिता’ मां मुख्यपणे श्रावकना धर्मोनुं वर्णन छे, तथा
‘पंचाध्यायी’ मां द्रव्य–गुण–पर्याय, सम्यक्त्वादिनुं वर्णन छे, अध्यात्मकमलमार्तंड ए
भावनाग्रंथ छे; आ ग्रंथो तथा बीजा केटलाक ग्रंथो तेमना रचेला मनाय छे.
बनारसीदासजीए आ कलश टीकाने ‘बालबोध’ टीका कही छे.
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: अनंतराय हरिलाल शेठ, आनंद प्रिन्टिंग प्रेस–भावनगर