Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी
वर्ष: २२ अंक प: वीर सं. २४९१ फागण
संबोधन
१. अरे जीव! निजस्वरूपने नीहाळवा तुं हजार सूर्य जेवो था.
२. जो चैतन्यको ध्याता है वो मोक्षसुखको पाता है.
३. चैतन्यकिल्लामां बहारनी कोई प्रतिकूळतानो प्रवेश नथी.
४. एकवार आत्मानुं वहाल कर, ने जगतनुं वहाल छोड.
प. आत्मा निजभावने कदी छोडतो नथी, परभावने कदी ग्रहतो नथी.
६. मूंझावाथी मार्ग मळतो नथी, धीरज अने विचारथी मार्ग मळे छे.
७. “स्वानुभूतिनुं सुख जगतमां सर्वोत्तम छे.”
८. “रागद्वेष कर्यो ते हार्यो; शांति राखी ते जीत्यो.”
९. आ जगतमां एवी कोई शक्ति नथी के जे वैरागी जीवने बांधी शके.
१०. कोई पण वस्तुनो निजस्वभाव अपूर्ण न होई शके.
२प७