Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ७ :
६३ निमित्तने अकिंचित्कर न मानतां, तेने उपादानमां किंचित् पण कार्यकारी माने तेणे
खरेखर निमित्तने मान्युं नथी.
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६४ कुगुरुओने मुनि तरीके न मानीए त्यां कोई कहे के तमे मुनिने मानता नथी,–तो
तेनी वात खोटी छे.
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६प मुनिनुं शुद्धनिर्ग्रंथ रत्नत्रयमय स्वरूप जेम छे तेम जाणवुं, ने तेथी विरुद्ध होय तेने
मुनि न मानवा–ते ज मुनिनी साची मान्यता छे.
*
६६ साचा मुनिनुं स्वरूप जे जाणतो नथी अने कुलिंगीने पण मुनि तरीके जे आदरे छे
ते खरेखर मुनिने मानतो नथी.
*
६७ जीव ज्यारे स्वानुभववडे ग्रंथिभेद करे त्यारे सम्यग्ज्ञाननी कणिका जागे ने त्यारे
मोक्षमार्ग शरू थाय.
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६८ हे जीव! तत्त्व विचारनी शक्ति तने मळी छे तो हवे स्वानुभवना उद्यम वडे
मोक्षमार्गने साध.
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६९ तारा आत्माना आश्रये ज तारो मोक्षमार्ग छे; तुं एकलो एकलो तारामां ने
तारामां तारो मोक्षमार्ग साधी शके छे.
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७० हे जीव! चैतन्यनी संभाळ करीने तुं तारा परिणाम सुधार त्यां सामे कर्मनुं जोर
तूटी ज जशे.
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७१ जीवना परिणामअनुसार ज जगतमां सहज परिणमन होय छे; आत्माने साधवा
जे जाग्यो तेने माटे आखुं जगत अनुकूळ ज छे.
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७२ रागने मोक्षमार्ग मानीने जे अटकी जाय छे, ने आगळनी शुद्ध–भूमिकानुं जेने लक्ष
नथी तेने मार्गानुसारी कहेता नथी.