Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख: आत्मधर्म :१:
गुरुदेवना ७६मां जन्मोत्सव प्रसंगे समर्पित ७६ पुष्पोनी
संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
१. जे संतगुरुए आत्मानुं स्वरूप समजावीने भवभ्रमणना दुःखोथी छोडाव्या ते
संतगुरुने नमस्कार हो.
*
२. आत्मस्वरूप अंतरनी वस्तु छे तेने जाण्या ने अनुभव्या वगर जगतना बधा जीवो
दुःखी छे.
*
३. सुख आत्माना स्वानुभवमां छे; स्वानुभव ए ज दुःख टाळवानो ने सुख प्रगट
करवानो मार्ग छे.
*
४. धर्मीने शुभ–अशुभ वखतेय सम्यक्त्वनी धारा अत्रूटपणे एवी ने एवी वर्ते छे.
*
प. स्वानुभवमां जे आनंदनो स्वाद चाख्यो छे तेमां फरी फरीने उपयोग जोडवानी
भावना धर्मीने वर्ते छे.
*
६. स्वानुभवमां उपयोग वखते निर्विकल्पदशामां अतीन्द्रियआनंदनुं जे विशिष्ट वेदन
छे तेवुं सविकल्पदशामां नथी होतुं.
*
७. धर्मी जीवने रागरूप परिणमन होवा छतां तेनुं सम्यक्त्व कांई रागरूप थई जतुं
नथी, ते तो रागथी जुदुं ज रहे छे.
*