Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
परिणाम जीवना आश्रये छे; आम बंनेनी भिन्नता छे, कोई कोईनुं कर्ता के
आधार नथी.
जुओ, आ भगवान आत्मानी पोतानी वात छे. नहि समजाय एम न
मानी लेवुं, अंदर लक्ष करे तो समजाय तेवुं सहेलुं छे. जुओ, लक्षमां ल्यो के
अंदर कंईक वस्तु छे के नहि? अने आ जे जाणवाना के रागादिना भाव थाय
छे ते भावनो कर्ता कोण छे? आत्मा पोते तेने करे छे.–आम आत्माने लक्षमां
लेवामां बीजा भणतरनी क््यां जरूर छे? जगतना ढसरडा करीने दुःखी थाय
छे एना करतां आ वस्तु स्वभावने समजे तो कल्याण थाय. अरे जीव! आवा
सरस न्यायथी संतोए वस्तुस्वरूप समजाव्युं छे, ते वस्तुस्वरूपने तुं समज.
वस्तुस्वरूपना बे बोल थया;
बाकीना बे बोल आवता अंकमां वांचशोजी.
स्वसन्मुख परिणामकाळे
शुद्धआत्मानी प्राप्ति क््यारे थाय?
के स्वसन्मुख थईने तेने उपादेय करे त्यारे.
शुद्धआत्मा उपादेय क््यारे थाय?
के स्वसन्मुख परिणाममां तेने प्राप्त करे त्यारे.
एटले के, शुद्धात्मानी प्राप्तिनो काळ ने तेने उपादेय
करवानो काळ एक ज छे. स्वसन्मुख परिणामकाळे शुद्धात्मा
उपादेय थाय छे ने तेनी प्राप्ति थाय छे. आ रीते स्वसन्मुख
परिणाममां ए बधुं समाय छे. जे परिणाम स्वसन्मुख
थईने प्रवर्त्या ते परिणाम सर्व पर भावोथी निवृत्त छे.