Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
[आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक १४]
(२०१) शासनप्रभावनानी गुरुदेवनी भावना अने सौराष्ट्र पर विशिष्ट उपकार
एकवार सत्य वस्तुस्वरूपनी सुंदर तत्त्वचर्चा नीकळतां गुरुदेवे कह्युं: अरे, आमां
विरोध करवा जेवुं छे ज क््यां? विरोध विचारवाळा पण आ समजे तो सारूं. आग्रह
मुकी मध्यस्थ थई थोडा दिवस सांभळे, तो वस्तुस्वरूप सीधुंसट बेसी जाय तेवुं छे. पण
एवो प्रसंग क््यारे आवे!! अरे, आवा सत्ने समज्या वगर विरोध करे छे, पण
भाई! एक तो शासनप्रभावनामां विघ्न थाय छे ने वळी ऊंधा अभिप्रायना सेवनथी
तारा आत्माने बहु दुःख थाय छे. कोईने दुःख थाय एम तो कोण ईच्छे! पण भाई,
आवा सत्यना विरोधथी आत्मा बहु दुःखी थाय छे! माटे मध्यस्थ थईने सत्यने
समज.–आम घणी करुणापूर्वक गुरुदेवने शासनप्रभावनाना भावो उल्लसता हता,
सत्य वस्तुस्वरूपनी जगतमां प्रसिद्धि थाय एवी भावना घूंटाती हती. गुरुदेव घणीवार
कहे छे के सौराष्ट्रना जीवो भाग्यशाळी छे के आवुं परम सत्य रोज रोज सांभळवा मळे
छे. खरेखर! सौराष्ट्र पर गुरुदेवनो विशिष्ट उपकार छे.
(२०२) ज्ञाननी प्रसिद्धि
‘आ शरीर छे’ एम परने जाणनारो पोते ज्ञानपणे प्रसिद्ध थाय छे, जाणनारो
पोते पोतानी प्रसिद्धि करे छे के ‘जाणनार हुं छुं. ’ आ रीते ज्ञान पोतानुं तेमज परनुं
पण अस्तित्व प्रसिद्ध करे छे. मारी सत्तामां ज्ञान थाय छे–एम ज्ञान स्वसत्तानी प्रसिद्धि
करे छे. ‘जगतमां सिद्ध भगवान छे’ –एम सिद्धने जाणनारुं ज्ञान पोताने तेमज
सिद्धने प्रसिद्ध करे छे.
(२०३) सौथी मोटुं कोण?
एवडुं मोटुं कोण छे–के जेनी पासे आकाश पण नानुं लागे छे? ते दर्शावतां
गुरुदेव कहे छे के–आत्मानो ज्ञानस्वभाव एवो महान छे के आकाश तो तेनी पासे साव
नानुं–परमाणु तूल्य लागे छे. अनंत आकाश पण ज्ञाननी गंभीर ताकातमां ज्ञेयपणे
क््यांय समाई जाय छे. ज्ञान छे ते गंभीर–