Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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तंत्री:– जगजीवन बावचंद दोशी कुंडला
संपादक: ब्र. हरिलाल जैन: सोनगढ
–ते शुं–शुं नहीं करे?
जेम बाह्यविषयोमां सुख
माननारा जीवो ते–ते विषयोनी
प्राप्ति माटे शुं–शुं नथी करता?
दिनरात तेमां लाग्या रहे छे. तो जेणे
आत्मस्वरूपमां ज सुख भास्युं छे ते
जीव आत्मस्वरूपनी प्राप्ति माटे शुं–
शुं नहि करे? दिन–रात सतत उद्यम
वडे परिणामने आत्मामां जोडीने ते
जरूर आत्मिक सुखने अनुभवशे.
वीर सं. २४९२ माह
वर्ष २३ अंक–४
(२६८)