Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : २७ :
शरमजनक जन्मोथी हवे बस थाव
आ आत्मा अशरीरी चैतन्यमूर्ति छे, तेणे जड देह धारण करीने जन्म–मरणमां
रखडवुं पडे ए शरम छे. ए शरमजनक जन्मो टाळवा माटे पहेलां आत्माने अंदरमां
धगश जागवी जोईए...अरे, हुं सिद्धभगवान जेवो चैतन्यमूर्ति आत्मा, ने मारे आवा
अवतार करवा पडे–ए शरम छे! मारो अतीन्द्रियआनंद मारामां ने मारे आ जड
ढींगला जेवी ईन्द्रियोने धारण करी करीने भवभवमां भटकवुं पडे ए–शरम छे. हवे
आवा अवतारथी बस थाओ. मारा चैतन्यनिधानने खोलीने आ शरमजनक जन्मोनो
अंत करुं.–आम अंतरमां मोक्षार्थी थईने जेने आत्मानी खरी जिज्ञासा जागे ते जीव
प्रयत्नपूर्वक आत्माने जाणीने, तेमां लीनतावडे मोक्षने साधे छे,–पछी फरीने देह धारण
करतो नथी.
जे ध्यावे निजात्मने अशुची देहथी भिन्न,
शरमजनक जन्मो टळे, धरे न देह नवीन.
साचो बंधु
अनंतज्ञानादि युक्त सिद्धभगवंतो त्रणलोकना जीवोना बंधु छे. परमात्मप्रकाश
गा. २०२मां कहे छे के सिद्धपरमेष्ठीनुं ध्यान करीने भव्यजीवो भवसागरने तरे छे माटे
सिद्धभगवान भव्यजीवोना साचा बंधु छे. जे हितकर होय तेने बंधु कहेवाय. पांचे
परमेष्ठी भगवंतो साचा बंधु छे. आत्मानुं हित बतावनारा सन्तो ए आ जगतमां
परम हितकारी बंधु छे. सिद्धभगवान जेवुं आत्मानुं शुद्धस्वरूप लक्षमां लेतां
सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे ने आत्मानुं परम हित थाय छे. एवुं स्वरूप देखाडनारा ने
साधनारा जीवो ते ज साचा हितकर बंधु छे.