धगश जागवी जोईए...अरे, हुं सिद्धभगवान जेवो चैतन्यमूर्ति आत्मा, ने मारे आवा
अवतार करवा पडे–ए शरम छे! मारो अतीन्द्रियआनंद मारामां ने मारे आ जड
ढींगला जेवी ईन्द्रियोने धारण करी करीने भवभवमां भटकवुं पडे ए–शरम छे. हवे
आवा अवतारथी बस थाओ. मारा चैतन्यनिधानने खोलीने आ शरमजनक जन्मोनो
अंत करुं.–आम अंतरमां मोक्षार्थी थईने जेने आत्मानी खरी जिज्ञासा जागे ते जीव
प्रयत्नपूर्वक आत्माने जाणीने, तेमां लीनतावडे मोक्षने साधे छे,–पछी फरीने देह धारण
शरमजनक जन्मो टळे, धरे न देह नवीन.
सिद्धभगवान भव्यजीवोना साचा बंधु छे. जे हितकर होय तेने बंधु कहेवाय. पांचे
परमेष्ठी भगवंतो साचा बंधु छे. आत्मानुं हित बतावनारा सन्तो ए आ जगतमां
परम हितकारी बंधु छे. सिद्धभगवान जेवुं आत्मानुं शुद्धस्वरूप लक्षमां लेतां
सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे ने आत्मानुं परम हित थाय छे. एवुं स्वरूप देखाडनारा ने
साधनारा जीवो ते ज साचा हितकर बंधु छे.