Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ६७ :
परदेशनो पत्र
आफ्रिका–मोम्बासाथी भाईश्री भगवानजीभाई–जेओ त्यांना मुमुक्षुमंडळना
उत्साही प्रमुख छे, तेओ आत्मधर्म प्रत्ये प्रमोद व्यक्त करतां लखे छे के–“आत्मधर्ममां
हालमां नवा नवा विषयो उमेरीने जे रसमय बनावी रह्या छो ते वांचतां घणो ज
आनंद आवे छे. अमो अहीं हजारो माईल दूर बेठा गुरुदेवना ताजा प्रवचनोनो सार
वांचीने साक्षात् रूबरू ज सांभळता होईए तेवा भाव ऊछळे छे; ते उपरांत
बालविभाग अने खास करीने प्रश्नोतरना रहस्य नवीन ज लागे छे. जाणे के गुरुदेवना
अंतरंगस्वभावना भावोनुं घोलन करीने पी रह्या होय, एवा लखाण वांचता तृप्ति ज
थती नथी. तमे भाग्यशाळी छो के आवा रहस्योनुं घोलन करीने सत्यपुरुषनी वाणीनुं
अमृत पी रह्या छो. अमने जलदी देशमां आवीने गुरुदेवना सत्समागमनो लाभ
लेवानी तीव्र झंखना रह्या करे छे.”
(लेख मोकलनार बंधुओने–)
बहारथी केटलाक भाईओना लेखो–काव्यो वगेरे मळ्‌या छे, ने बीजा केटलाक हजी
लखीने मोकलवानुं जणावे छे. आवेला लखाणोमांथी जे उपयोगी हतुं ते लीधुं छे;
बाकीनुं आत्मधर्मनी शैलीने अनुरूप न होवाथी छोडी दीधुं छे. लखाण मोकलनारा
बंधुओनी आत्मधर्म प्रत्येनी लागणी बदल आभार.
भुपेन्द्र अमुलख जैन (जोरावरनगर)
आपनो पत्र मळ्‌यो; आपे लखेल “पत्र योजना” लक्षमां छे; परंतु बाळविभाग
संपूर्ण व्यवस्थित थई जाय त्यार पछी ज नवी योजना हाथमां लई शकाय.
बालविभागनी हजी तो शरूआत ज गणाय. गुरुदेवना जन्मोत्सव संबंधी आपे
भक्ति–भावना व्यक्त करी ते योग्य छे. जन्मोत्सव आनंदथी उजवाई रह्यो छे.
(सूचना: केटला भाईओ पत्रना जवाब माटे साथे टिकिट बीडे छे; ते
मोकलवानी जरूर नथी. जवाब लखवा जेवा दरेक पत्रनो जवाब (पोस्टे ज मोकल्या
वगर पण) लखाय ज छे.
ज्योतीन्द्र जैन (वढवाण)
तमारा गायननो राग आत्मधर्ममां न चाले.
“एकडेएक....” विभाग हवे पछी आपशुं.
भीमसेन सोनगढमां आव्या हशे?
जी हा; केमके तेओ मुनि थया पछी शत्रुंजय उपर पधार्या हता त्यारे तेमना
पुनित पगलांथी अमारा सोनगढनुं क्षेत्र पण पावन थयुं हशे; शत्रुंजय जवानो रस्तो
सोनगढथी ज पसार थाय छे; एटले पांच पांडव मुनिवरोना पुनित पगला सोनगढनी
भूमिमां थया हशे.–ते भीम वगेरे पांचे भगवंतोने नमस्कार.