Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd. No. 182
जे जीव मोक्षार्थी थयो छे.....मुमुक्षुतामां जेणे पगलां
मांडया छे.....अनादि संसारथी भिन्नदशा तरफ जेणे पोतानुं मुख
फेरव्युं छे.....महा उद्यमपूर्वक शीघ्र मोक्षपद साधवा माटे जे कटिबद्ध
थयो छे. आत्मतत्त्वनी रुचि वडे मुमुक्षुतानी भूमिकामां आवीने
जेणे संसारना साधारण जीवो करतां एक प्रकारनी विशिष्टता
प्रगट करी छे, जगतना पदार्थो करतां पोतानुं चैतन्यपद जेने
अतिशय वहालुं लाग्युं छे, आध्यात्मिक सन्तोनी चरणसेवामां
जेनुं चित्त अतिशयपणे लागेलुं छे, ज्ञानी पुरुषोनां वचनोवडे जे
पोताना आत्मामां झडपथी नवा नवा अपूर्व संस्कार सींचतो
जाय छे, निज आत्महित साधवानी महानमां महान
जवाबदारीना भानमां जे सदा जागृत वर्ते छे, जेनुं चित्त
संसारथी विरक्त थईने आत्मिक साधना प्रत्ये उत्साहित वर्ते छे,
एवो आ मोक्षार्थी पोतानी नवीन कार्यभूमिकामां परम प्रीतिथी
वर्ततो थको, पोताना आत्मविश्वास अने आत्मउल्लासपूर्वक
गुरुचरणमां निजकार्यने शीघ्र साधे छे.