Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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Atmadharma Regd. No. 182
सन्त प्रत्ये....
घणा वर्ष जुनी ‘फूलछाब’ नी एक कापली अचानक हाथमां आवी–
जेमां एक काव्य हतुं. मुमुक्षुजीवन सन्तने पोताना जीवननो आधारे मानीने
तेमना प्रत्ये आ काव्यद्वारा पोतानी जे ऊर्मि व्यक्त करे छे ते गमी, तेथी अहीं
आभार साथे प्रगट करी छे. सं.
हे सन्त मारा. जीवनना आधार छो.
तमे तो मारा प्रेमी प्राणाधार छो.
हे संत मारा. जीवनना आधार छो.

तारी कृपाथी मारुं जीवन आनंद चाले,
तारी आशिषे एनां फूलडां ऊगे ने फाले;
दैवी को दातार छो, हे सन्त मारा०

जीवनना रणमां न्यारी वनस्थळी छे तमारी;
तापे तपेलुं हैयुं छाया पामे छे भारी;
अमृतना आगार छो, हे सन्त मारा०

तमे छो पिता ने माता, सखो तमे स्नेही,
प्राण तेम जीवन ने देह वळी देही;
संसारना एक सार छो, हे सन्त मारा०

कृपानी अखंड वर्षा वरसी रहेजो प्रेमे,
अमारा विना रहेजो विखूटा कदी ना केमे,
प्रेमीना हैयाना हार छो, हे सन्त मारा०
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने