Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : २९ :
३४४ ३६९ १६११ १प९६ १३२२
२प२ २प३ ११पप २४४ ३२प
७८७ ७८प ८६८ ८६९ ४१४
८७० १प८१ १२९ पप० ११३प
११३६
MB. १२प१ ११६२ ८३
८४ ६६ १००८ १४१० १४११
१४१२ २७२ ८६१
SJ. ४४८
४४९A ८०८ १३३३
फूल अने भ्रमर
फूल ईच्छतुं नथी के
भ्रमर तेनी पासे आवे;
छतां एनी सुगंधथी
आकर्षाईने भ्रमर आवे छे.
तेम
गुणवान सन्तो ईच्छता
नथी के कोई एनी सेवा करे; पण
एना सद्गुणोनी सुगंधथी
आकर्षाईने, वगर बोलाव्ये पण
मुमुक्षु एनी सेवा करवा आवे छे.
ससाशींगनुं वहाण ज कर्युं,
मृगतृष्णामां जईने तर्युं,
वंध्यासूत बे वहाणे चडया,
ने ख–पुष्पनां वसाणां भर्या.
आनो अर्थ तमने
आवडशे? नहितर गुरुदेवे तेनो
भावार्थ समजाव्यो छे ते आवता
अंकमां वांचशो
मारो धर्म
(‘देश मारो देश मारो’ ना आधारे बनावेलुं
धर्म मारो धर्म मारो धर्म मारो रे,
प्यारो प्यारो लागे जैन धर्म मारो रे...१
ऋषभ थया, वीर थया, धर्म मारो रे,
बलवान बाहुबली सेवे धर्म मारो रे... २
भरत थया, राम थया, धर्म मारो रे,
कुन्द–कहान जेवा संत थया धर्म मारो रे... ३
सीता–चंदना–अंजना थया धर्म मारो रे,
ब्राह्मी–राजुल–मात शोभावे धर्म मारो रे... ४
सिंह सेवे, वाघ सेवे धर्म मारो रे,
हाथी, वानर, सर्प सेवे धर्म मारो रे... प
आतमानुं ज्ञान आपे धर्म मारो रे,
रत्नत्रयनां दान आपे धर्म मारो रे... ६
समकित जेनुं मूळ छे ए धर्म मारो रे,
मने सुख आपे मोक्ष आपे धर्म मारो रे... ७